Sunday, February 20, 2022

एकच प्याला -मराठी नाटक हिंदी अनुवाद 5.3

 

प्रवेश III

(स्थल - रामलाल का आश्रम। रामलाल प्रवेश करता है।)

रामलाल: (स्वगत) अब मैं अपने मन की गंदी तस्वीर साफ देख सकता हूं! क्या मेरे पतन की कोई सीमा है? पिता की दृष्टि से शरद को देखें तो मानवीय सम्बन्धों की महानता के कारण देह की अन्तर्निहित यौवन दृष्टि से जरा भी नहीं मिटती। मैंने शरद के लिए जो एक सहानुभूती, भूतदया के रूप में महसूस की, वह एक कमजोर दिमाग वाले हिंदू व्यक्ति की पारलौकिक कामुकता थी! बेचार गीताको पढ़ाते हुए मै मेरे मन को धोखा देता आया हूँ कि यह समाधान तुम्हें इसलिए मिल रह है कि तुमने अनाथों को कल्याण का मार्ग दिखाया है। लेकिन यह इतना उदार नहीं था! गीता को सीखता देख शरद को संतोष हुआ, तो मैं उस समय उत्साहित हो गया! वो भी प्रियाराधनका एक तरीका था!

(राग- भैरव; ताल- त्रिवत। चाल- प्रभु दाता रे।)

मन पापी है। करिते निजवंचन अनुघटिदिन॥ धुरु .॥

उपसंपर मतिमेशज सेवुनी सुप्तियत्न कारी, परी ते।
अच्छे विवेक में असफल अंत। 1

एहसान के लिए कृतज्ञता से, बेचारा भगीरथ जल्द ही मुझसे खुले दिल से बात करने लगा। तभी मैं इससे ऊबने लगा। ज्यादातर मौकों पर मैं सोचता था कि मनुष्य की उस फालतू आत्मीयता को साझा करके आपको भगीरथ से घृणा होती होगी; लेकिन वह नापसंदी का असली कारण नहीं था! बिना जाने मेरे मन में जो गुप्त ईर्ष्या उत्पन्न हुई, वह यह थी कि शरद ने समय-समय पर मुझसे कहा कि भगीरथ उसके साथ खुले दिल से व्यवहार करता है।

जैसे ही युवा आत्माओं ने एक-दूसरे को देखना शुरू किया, मेरे वयस्क मन में ईर्ष्या भड़क उठी! तो - लानत है, लानत है मुझपर! आज मेरा दुर्भाग्य है कि सुख के क्षुद्र लोभ से पुत्र माने जाने वाले भगीरथ को दुखी करके, कन्या माने जानेवाली शरद के कोमल हृदयपर जलते टुकडे डालकर  मैं अपने बुढ़ापे पर, रिश्ते की जिम्मेदारी पर और विचार की अंतरात्मा पर भी पानी बहाने के लिए तैयार हुआ। चूँकि यह हमारी बदकिस्मतीका परिणाम है।

पराक्रमी व्यक्ति द्वारा प्राप्त शक्ति को स्वतंत्रता की उदारता तक सीमित करने की आदत नहीं है, इसलिए संयोग से प्राप्त छोटी शक्ति का उपयोग कर कमजोर आत्माओं पर हम सुल्तानी अरेरावी रहे हैं। आज, हम भौतिक संसार में ईश्वर द्वारा निर्मित सौंदर्य की खोज में रुचि नहीं रखते हैं, क्योंकि हजारों वर्षों से हमारे मन मृत परंपराओं के निरंतर बोझ से लकवाग्रस्त हो गए हैं। ऐसी सुंदरता पाने की कोई पवित्र इच्छा नहीं है। पुरुषार्थ में उस इच्छा को पूरा करने की शक्ति नहीं है। और जो वास्तविक कारण मिलने पर निकटतम खुशी को भी छोड़ देने जैसी उदार कर्तव्यनिष्ठ आपत्ति करने वाला कोई नहीं है! क्षुद्र सुख की आशा में भी पितरों द्वारा बोले गए व्यर्थ वचनों के विचार तुरन्त रुक जाते हैं। ज्ञान भले ही मन को ऊँचे वातावरण में रखता हो, पर आकाश में उड़ने वाले गिद्धों की तरह हमारे मन को थोड़ी सी भी लालच से तुरंत धूल मिल जाती है। पांच हजार वर्ष की आयु गिनने वाले भारतवर्ष के रूप में पुराणपुरुष,  अपने विशाल शरीर के लिए हिमाचल जैसा प्रतापी सिर बनाकर क्या विधाता गंगासिंधु जैसी पवित्र माथे की रेखाओं से भी अपनी खुशहालीका स्थायी लेख नहीं लिख पायी? कहो, दुर्भाग्यपूर्ण भारतवर्ष! जब आप दक्षिण महासागर में जीवन देने के लिए समुद्र में उतरे थे तो भगवान ने आपको किन पापों का प्रायश्चित करने के लिए उठाया था? इस डर से कि भविष्य में रामलल जैसी गरीब पीढ़ी का जन्म होगा

हे प्रभु, क्या मेरे पाप मुझे कभी क्षमा किए जाएंगे? भगीरथ और शरद से किस मुंह से माफी मांगूं? नहीं, मन का तीव्र आवेग अब मृत्यु के सिवा किसी और चीज के साथ नहीं रुकेगा। (भागीरथ और शरद आते हैं।) हत्भागी रामलाल, कर्मों के फल भोगने के लिए पत्थर के दिल से तैयार हो जाओ, और इन दुखी आत्माओं के लिए क्षमा मांगो।

भगीरथ: भाई, छोटा मुँह बड़ी घास लिया तो अपने प्रिय भगीरथ को क्षमा करोगे? मैं आपके चरणों में एक निवेदन करने आया हूं।

रामलाल: भगीरथ, तुम आज मुझसे बात करते समय इतना औपचारिक रवैया क्यों अपनाते हो?

भगीरथ: भाई साहब, मैं आपकी शरण में आया हूँ जनसेवा करना सीखने के लिए; पूर्व में, सभी शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुरुगृह छोड़ने पर गुरुदक्षिणा देने की प्रथा थी; लेकिन आजकल हर महीने एडवांस में आपको एक फीस देनी पड़ती है! भाई साहब, इसी नई विधि को अपनाकर मैं आपको गुरुदक्षिणा देने आया हूं। इसे स्वीकार करें और अपने बच्चे को आशीर्वाद दें!

रामलाल: कैसी दक्षिणा दोगे ?

भगीरथ: शरद के प्राणोंकी जिन्होंने मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया है! भाई, आपके चरणों में मैं सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हूँ, जैसा आप कहते हैं!

रामलाल: शरद, भगीरथ ने जो कहा वह सच है? (शरद नीचे देखत है।)

भगीरथ: इस मौके पर वह शरमा कर क्या कहेंगी?

रामलाल: (स्वगत) हाँ, वास्तव में! यह क्या है, लेकिन बेचारी हिंदू बाल विधवा किसी भी अवसर पर क्या कहेंगी? जैसे ही हमने ईसाई धर्म का सिद्धांत सुना कि गाय की कोई आत्मा नहीं है, हम हास्यास्पद आर्यवाद के साथ हँसे, लेकिन मेरे जैसे क्रूर जानवरों के पशुवत रवैये ने इन बेचारी गायों को न केवल आत्मा बल्कि जुबान भी नही रखी!

भगीरथ: शरद, भाई साहब को मेरी बात सच नहीं लगती है; मेरे वचन के लिए आप-

रामलाल: रुको भगीरथ, क्या तुम समझते हो कि यह तुम्हारे प्यार की निशानी है कि तुम इतनी आसानी से शरद को छोड़ने के लिए तैयार हो? मुझे नहीं लगता कि शरद के लिए आपका हार्दिक प्यार बिल्कुल सच्चा था!

भगीरथ: आपको ऐसा लगता है! सर्वज्ञ सर्वेश्वर क्या सोचते हैं? आपके साथ होनेवाले नये रिश्तेको देखकर, मुझे शरद के बारे में खुलकर बात करने का कोई अधिकार नहीं है!

रामलाल: (स्वगत) अच्छा किया, भगीरथ, अच्छा किया! यह रामलाल आप जितने महान हैं, उतने ही नीच हैं! मेरे मन के हल्केपन के कारण बेचारी शरद के आपसे प्यारको मैने कुचल डाला। (खुलकर) क्या आपके लिए यह सही है कि आप उसे इतने पवित्र प्रेम करनेके बाद समर्पित करके उसे छोड़ दें?

भगीरथ : एक बार नहीं, हजार बार उचित है! मैं इस प्रलोभन को उस काम के लिए छोड़ना चाहता हूं जिसके लिए आपने मुझे जीवन दिया है! अगर मैं खुद को शरद के आकर्षण में पाता हूं, तो मैं आपकी सलाह का पालन नहीं करूंगा और मुझे भविष्य के जीवन का रास्ता नहीं मिलेगा! भगीरथ तुरंत सांसारिक सुखों की और प्यार की बेड़ियों को तोड़ रह हैं और एक महापुरुष के रूप में समाज की सेवा करने के लिए, मेरे देश के लिए, आपके उपदेश के लिए! आप जैसे महापुरुष की सलाह-

रामलाल : भगीरथ, उपदेश देना इतना आसान काम है कि मुझे महान कहना हास्यास्पद है! उपदेश करने वालेसे उपदेश सुनकर अपने मोहको त्याग देनेवाला ही हमेशा श्रेष्ठ होता हैमहान हृदय वाले बालकों, यह छोटा-सा रामलाल त्याग के दीप्तिमान तत्त्व से आलोकित तुम दोनों के मुख खुली आँखों से देखने योग्य नहीं है! क्षणिक पापमय प्रलोभन के लिए मुझे क्षमा करें! बेटा शरद, मेरे अपशब्दों के लिए मुझे एक बार माफ कर दो, पामर मन और पाप का ह आखिरी स्पर्श! भगीरथ, शिष्यने पहले गुरु को गुरुदक्षिणा देनी चाहिए यह जैसा परिपाठ है उसीतरह कुशाग्रबुध्दीके शिष्यको प्रोत्साहित करनेके लिए कोई पुरस्कार देनेका भी नियम है। आपने मेरी शिक्षा का पहला पाठ इतनी चतुराई से सीखा है कि आपकी सराहना करना मेरा कर्तव्य है! उदार बच्चे, अपनी खूबसूरत तस्वीर के साथ खुश रहो!

(शरद का हाथ भागीरथ के हाथ में देता है।)

(राग- देस्कर; ताल- त्रिवत। चाल- अरे मन राम।)

स्वीकार्य राम्या अमल चित्रा या।
आप इनाम के पात्र हैं। धुरु .॥

छात्र अच्छा है। व्यवसायी। हे वितरित गुरुमाया! 1

भगीरथ, सार्वजनिक सेवा के एक सख्त व्रत का पालन करते हुए, कभी-कभी नेता को सार्वजनिक विवाद का विषय होना पड़ता है। रामलाल का यह खाली दिल-

(गीता रोते हुए आती है, उसे गले लगाते हुए)

आओ बेबी, आओ! रामलाल का ये खाली दिल है समर्पित आप जैसे अनाथों को! तालीराम की असामयिक मृत्यु के कारण आप पर जो दुर्भाग्य आया है, वह धन के अलावा कुछभी काम नही आएगा। यह रामलाल का बुढ़ापा आपके जीवन के चंद साल आपके लिए निकालकर और आप जैसी लड़की को पितृसत्ता मानने में ज्यादा सार्थक होगा, मेरे बुढ़ापे में से कुछ साल निकालकर खुद को युवा बनाने की कोशिश करने और उनकी शरद में एक बोझ जोड़ने से ज्यादा सार्थक होगा। मैं तुम्हें वह सारी दौलत दे रहा हूँ जो मुझे अपने चचेरे भाई से मिली है! वह आपके काम आएगी! हमारे समाज ने अभी तक इतना बड़ा सुधार नहीं देखा कि आप जैसी कुरूप विधवा के प्रति सहानुभूति हो! भगीरथ जैसा असाधारण रत्न मिलना संभव है! बाकी समाज का अधिकांश हिस्सा रामलाल जैसा है! मेरे उदाहरण से, मुझे लगने लगा है कि हमारे सुधार में बहुत आत्म-निषेध है! अनाथ बाल विधवाओं की दया के लिए हमें एक अच्छे चेहरे की भी आवश्यकता है। हमारा सुधार अभी भी देखने वाले की नजर में है! हमारा ज्ञान अभी भी जुबान पर नाच रहा है। जीभ की नोक काट दी जाए तो भगवान भी नहीं जान  सकेगा कि हम में से कौन संस्कृत और सुशिक्षित माना जाता है! इतने लंबे समय तक शरद के प्यार में न पड़ पाने का मुझे अफ़सोस हुआ; परन्तु यदि प्रेम के पात्र मनुष्य का धर्म है, तो दया देवताओं का गुण है! (पद्माकर आते हैं।)

पद्माकर: भाई सुधाकर ने अपने बेटे को मार डाला और ताई को घायल कर दिया! मैं उसे अपराधी के हाथ पकड़ने को निकला हूं, मेरे साथ आओ।

रामलाल : क्या कह रहे हो ?

पद्माकर: वैसे तो मैं आपको सब कुछ बता देता हूं; लेकिन पहले जल्दी चलते हैं; मेरा यह भी कहना है कि आपको इस बार सुधाकर को लेकर अपना विचार नहीं बदलना चाहिए। अगर उस नरपशूके मोहसे से बच गय, तो मेरी अनाथ ताई जी सकेगी! आओ आओ!

रामलाल: ओह, लेकिन ऐस अविचार -

पद्माकर: मैं अपनी बहन की दुर्दशा की कसम खाता हूँ कि मैं अब तब तक नहीं रुकूँगा जब तक मैं सुधाकर को सरकार शासन नहीं दे देता! इसे लापरवाही कहें, इसे बदला कहें, जैसा आप सोचते हैं वैसा ही कहें! जल्दी चलो

रामलाल: भगीरथ, शरद और गीता दोनोको लाओ। सुधाकर के पास चलते हैं। (सभी जाते है।)

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