Saturday, February 19, 2022

एकच प्याला -मराठी नाटक हिंदी अनुवाद 4.2.2

सुधाकर: (स्वगत) सिंधु, इतनी महानता के साथ, आपने गीताका बोलना क्यों बंद कर दिया? शराब के नशे में सो गई मेरी रूह को तेरे कोमल बोल कैसे जगायेंगे? गीता के मुंहसे निकलनेवाले  ऐसे क्रूर पत्थरों से मारा जाना जरूरी है! गीत का हर शब्द  मेरे जानपर कोड़े जैसा लगता था! सिंधु, आप अपने पति के पेट पर बैठी इस शराब की सराहना करती हैं, तो यह आपको सांबा पिंडी पर बैठे बिच्छू के डंक की तरह और भी चिढ़ाती है!

सुधाकर, चांडाल, केवल शराब की बुरी आवाज से पशु बनकर इस देवता का कितना अपमान किया तूने! आपकी सारी बुद्धि कहाँ गई? मैंने ऊँच ब्राह्मण जाति को लात मारी, विधवा की जिम्मेदारी छोड़ दी और वेश्या की तरह शराब पीने लगा! उफ़! देखो सिंधु आ गई है। जिस देवी के साथ मैंने शराब पी थी, उसे मैं यह मुंह कैसे दिखाऊं? (वह अपना चेहरा ढक लेता है और रोता है। सिंधु करीब आती है और खड़ी हो जाती है।)

सिंधु: क्या हुआ गीताबाई मुखसे बहुत तिखी है! उनकी बातोंपर कोई ध्यान न दो!

सुधाकर : सिंधु, मैंने आज से शराब छोड़ दी!

सिंधु: (खुशी से) सच में क्यों?

सुधाकर: सच, बहुत सच! आज से पीना छोड़ दिया; हमेशा के लिए छोड़ दिया!

सिंधु: आह! अगर ऐसा हुआ तो भगवान ही प्रसन्न हुआ!

(राग-भैरवी; तल-केरवा। चाल-गा मोरी नंदी।)

भगवान अजी गमला मणि तोशला। धुरु .॥

कोपे बहू माझा। तो प्रभुराज अब हँसे। धन संतुष्ट है।

मरे हुओं का दिल था नाथ, पूरा हुआ।
वादे ने इसे जीवंत बना दिया।
अमृत ​​शब्द फिर से सुनाई देते हैं।
मेरी पूरी सुनने की शक्ति एक साथ है। 1

इसे देखिए, पैरों पर सिर रखकर बिनती करती हूँ  कि शुभ मुहूर्त का यह निश्चय कभी नहीं भूलना चाहिए। (उसके पैरपर  माथा रखती हैं। वह उसे उठाता है।)

सुधाकर: सिंधु, सिंधु, क्या कर रही हो? क्या तुम अपना सिर मेरे पैरों पर रखते हो? इस  सुधाकर के? यह शराबी सुधाकर क? अपनी विद्या, ज्ञान, नाम,को शराबमे डुबाया उस शराबी सुधाकर क? सिंधु, मैंने शराब की आदतसे क्या कर बैठा हूँ? पिता क गुण और , ब्रह्मकुली की पवित्रता! को शराब ने तिलांजली दी। आप जैसी देवी का ऐसा उपहास! आप अपने पिता के घर में हरएकको जो घास रोज मुफ्त दिये जाते  थे, वह आपको अन्ऩका घास मिलना भी मुश्कील कर दिया कि गीता जैसी लड़की आप पर रहम करे और सहस्रभोजन का रास्ता बताए! एक बच्चे के रूप में, आपने अनजाने में गुड़िया-गुड़िया की शादी में छोटा अंतर्पाठ के लिए पैठनीकी  तरकीबें बनाई होंगी; लेकिन आज फटे कपड़े देखकर बाहर  जानेकी चिंता रहेगी! अपने बाप के घर में खेलते-खेलते तुम धानपीसनेकी जात को मोतियों से भर देत, लेकिन किसी ने सोचा न होगा। मैंने तुम्हें ऐसी हालत में बनाया है कि पेट के लिए आँसुओं के मोती  पीसना पड़े!

आपका पवित्र पुण्य है कि पुण्य कर्मों के लिए पंचपतिव्रत प्रतिदिन आपकी पूजा करें! तुम्हारे उस अंग को तालीराम जैसे जानवर ने छुआ था! दरिद्र परन्तु पवित्र विधवा को देखकर देवता भी मार्ग से दूर हो जाये  उस विधवा में गिरे बेचारे शरद का भी मज़ाक उड़ाया! मै पातकोंमे सबसे अच्छा पातकी हूँ ! क्या तुम अपना सिर मेरे पैरों पर रखते हो? तुम मुझे नरक में क्यों नहीं फेंक देत?

सिंधु, गीता ने क्या झूठ बोला? तुम मेरे जैसे पाषाण देवता की भक्ति से क्यों पूजा कर रहे हो? क्या मैं तुम्हारा पति बनने के योग्य हूँ? बाबा साहेब, आपने इस मणि को पूरी तरह से धोखा देकर शराब में डुबो दिया है! लेकिन आप पहले क्या जानते थे, कि ब्राह्मण कुल के इस विद्वान सुधाकर का भविष्य में ऐसा नशा होने वाला है! तक्षक को मारने के लिए, अस्तिका ने इंद्रदेव को आग में कूदने के लिए आमंत्रित किया, जो उसका समर्थन भी कर रहा है।

सिंधु: सुनते हो? मै आपको ऐसा कुछ बुरा बोलने नही दूंगी। क्या आप आज से छोड देनेवाले है ना? तो अतीत से परेशान क्यों? वो गंगा को मिल गया! एक बार जब मन संयमित हो जाता है, तो आपके पास क्या कमी है? सब कुछ सोने जैसा हो जाएगा! क्या आप जारी रखना चाहते हैं?

सुधाकर: हमेशा के लिए, हमेशा के लिए, हमेशा के लिए भी! मैं आपके बच्चे की कसम खाता हूँ कि आज से शराब पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वकील का चार्टर चला गया है; मेरे चार वजनदार दोस्तों के बीच बोलके नौकरी की तलाश करुंगा। अब यह सुधाकर आपके एक शब्द से आगे नहीं जाएगा!

सिंधु: आह! ऐसा हुआ तो अमृतेश्वर पर कपासकी दिया लगाकर- पाँचों आत्माओं की पंचरति लहराऊँग! आपके एक शब्द से मेरी प्रसन्नता त्रिभुवन भर गई है और आकाश नीचे आया है ! मुझे नहीं पता कि ये सोने के अक्षर किसे बताएं! सबसे पहले, यह आपके छोटे बच्चे कोही ये बताती हूँ !! (जात है।)

सुधाकर: (स्वगत) कौन-सा उत्साह मेरी शाश्वत निराशा क यह परमानंद नहीं देगा?

(राग- खमाज; ताल- त्रिवत। चाल- दखोरी गई गाई।)

डेटसे बहू उत्सव मन विमली उनका आनंदमय नया जीवन। धुरु .॥

निर्मल मंगल पवन पुण्यद। जे. त्रिभुवानी। तद्भवन सतीमन। प्रसाद, उसे जन्म मत दो। 1

(सिंधु बच्चे को लाती है।)

सिंधु: क्या आप देखते हैं कि यह झूठा यह सुनकर कैसे हंसता है? बेबी, आपके पास फिर से एक सुनहरा दिन होगा!

(राग-पहाड़ी; ताल-कावली। चल-तारी विचेला।)

आप कैसे स्वस्थ हैं उठ जाओ झानी ताक उदय। धुरु .॥

साल क्यों नहीं। घण सुधेचा, छबडा ?॥ 1

सरले अजी सारे। कुदिन अपुले, बगदया! मैं 2

बेबी, तुम अभी भी इतने छोटे क्यों हो? इस खुशी की गुड़ी लेकर बाबा और भाई के पास नहीं दौड़ना चाहते? तुम मुझसे बार-बार क्या पूछ रहे हो? वहाँ सोचो? क्या आपने सुना है, इसे एक बार अपने मुंह से कहना बेहतर है!

सुधाकर: बेबी, मैं कसम खाता हूँ कि इस सुधाकर ने हमेशा के लिए शराब छोड़ दी है! (वे दोनों लड़केसे मुह मिलाते हैं। पर्दा गिर जाता है।)

 

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