Wednesday, February 16, 2022

एकच प्याला - मराठी नाटक - हिंदी अनुवाद - 1.2

 

प्रवेश II

(स्थान: तालीराम का घर। पात्र: तालीराम और भागीरथ)

तालीराम: (बोतल को दोनों पैरों में पकड़कर, वह कसाई को निचोड़ रहा है।) शराबकी आदत छूटती नही! एक बार लेने के बाद, आदत छूटती नही! तो इसलिये शराब बहुत खराब है ? ऐसे कैसे हो सकता है?" ले लो! (दोनों पीते हैं।) भगीरथ, शराब के बारे में गपशप करने वालों में से बहुत से लोग यह भी नहीं जानते कि शराब क्या है! खैर, मैं कहता हूं, यह मान लो कि एक बार जब आप नशे में आ जाते हैं, तो यह दूर नहीं होता है! लेकिन इससे शराब इतनी बुरी कैसे हो सकती है? भगीरथ, आप विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। चार दिनों की परीक्षा पास करने के बाद एक डिग्री प्राप्त करें,  तो वह जन्म पर टिकी रहती है! तो क्या किसी ने डिग्री लेने का फैसला किया है? वही पत्नीके बारेमे! एक बार जब आप हार पहनाते है, तो क्या पत्नी का बोझ लगा रहता है? तो आप पत्नी क्यों बनना चाहते हैं? डिग्री खराब नहीं, बीवी खराब नहीं तो शराब इतनी बुरी क्यों है?

भगीरथ : तालीराम, इन तीनों चीजों में बहुत समानता है, लेकिन  इन सब की तुलना कैसे की जा सकती है? क्या स्नातक और अन्य पत्नियों के ऐसे बुरे परिणाम होते हैं?

तालीराम : परिणाम शराब से भी बहुत बुरे है. ऐसे कई ग्रेजुएट का हाथ पकड़कर मैं दिखाऊंगा कि अगर डिग्री के नाम का खोखला आधार नहीं होता, तो वे अपनी मूर्खता को दुनिया के सामने पेश करने की हिम्मत नहीं करते। सच तो यह है कि शराबीका बोलना कोई नहीं समझता; वैसेही वह स्नातक के प्रलाप को भी नहीं जानता! अंग्रेजी शासन की शुरुआत के बाद से हमारे गरीब देश पर जो कई विपत्तियां आई हैं उनमें डिग्री और प्यार सबसे प्रमुख हैं। जैसे ही स्कूल में कदम रखने से डिग्री मिलनेका समय आता है, बच्चा अपना विचार और मूंछ दोनो बढाने लगता है। खुले दिमाग से मूर्खता विरासत में मिलती है और मुछे लडकियोसे प्रेमकी तरफ मुडती है

भगीरथ: आप तो  दात्त प्रेम का उपहास ही कर रहे हो!

तालीराम : भगीरथ, तुम एक और प्याला लो। इससे  आपकी जुबान से दात्त महान जैसे शब्द धुल जाएंगे। क्या प्यार हास्यास्पद नहीं लगता? काश, काव्य में कमल नहीं होता, नाटक में बदला, उपन्यासों में तहखाना, पत्रिकाओं में विशेष अंक, समाचार पत्रों में विशेष संवाददाता, दुनिया में प्रेम, औद्योगिक आंदोलन में सहयोग, सुधार में देशभक्ति आत्म-बलिदान और वेदांत में परब्रह्म तो  उपहास के लिए कोई जगह नहीं होगी।

भगीरथ: रहने दो। बताइये कि प्यार का प्रभाव शराब से भी जादा बूरा कैसे होता है! खूबसूरत महिलाओं के प्यार के आगे इस शराब की क्या कीमत है?

तालीराम: हाँ, प्यार में क्या ज़िंदगी है? शराब हर लिहाज से प्यार से बेहतर है। देखो, प्रेम में राजा दास होता है, परन्तु शराब में दास राजा के समान स्वतंत्र होता है। जहां प्यार भीख मांगना सिखाता है, वहीं शराब की दरियादिली की कोई सीमा नहीं होती। प्यार के लिए प्रेमी की लात खानी पड़ती है, लेकिन शराब के बल पर पूरी दुनिया को लात मारी जा सकती है। प्यार आपको कुछ नही सोचने देता, जबकि शराब आपकी कल्पना को विकसित करती है। इतनाही क्यों अगर आप बहुत ज्यादा प्यार करते हैं, तो आपको शराबी आखोवाली  मिल सकत है, लेकिन अगर आप शराब पीते हैं और आपकी आंखें लाल हो जाती हैं, तो आप खुद भी शराबी आखोवाले बन सकते हैं! कहो-

भगीरथ: यह सच है। ये चीजें मेरे ध्यानमे नहीं आई थीं। प्यार की एक और बात है कि हमें कई राते सोतेबिना  गुजरनी पडती है और न केवल रात को बल्कि दिन में भी शराब के कारण सो जाना पड़ता है। अच्छा, आपको क्या लगता है कि शराब का नैतिकता से क्या लेना-देना है?

तालीराम : शराब बहुत ही नैतिकतासे ताल्लुक रखती है. सुनिए कैसे। शराबी कभी झूठ नहीं बोलता। क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोल सकता! शराबी कभी किसी के साथ खरीखोटी नहीं सुनाते। क्योंकि उसे याद नहीं रहता कि किसने क्या कहा! वह कभी किसी को धोखा नहीं देता, क्योंकि कोई उस पर भरोसा नहीं करता!

भगीरथ: तो क्या?

तालीराम : चोरी के मामले में है वह बिलकुल अंजान! रहता है वह दूसरे से एक छोटी सी चीज भी नहीं चुरा सकता - वह जलदीसे से सब कह डालता है।

भगीरथ: दरअसल, वह चोरी की शराब भी नहीं पी सकता।

तालीराम: ऐसा मज़ाक मत करो! एक बार हमारी शराब पीने की सभा में, हमारा एक मित्र चोरी करना चाहता था। फिर उसने एक बड़े दांव से मेरी उंगली से अंगूठी छीन ली; लेकिन अंत में, शराब के नशे में, उसने उसे फिर से मेरे पास रखने दिया। हालांकि, उन्होंने मुझे चेतावनी दी कि यह सामान चोरी का है और किसी को नहीं दिखाया जाना चाहिए।

भगीरथ: बढ़िया! दोनों के लिए संतुष्टि! फल एक को  चुराया इसलिये और  दूसरेको  चुराई चीज वापस मिलनेका!

तालीराम:भी प्यार के मामले में देखिए! कोई किसी का दिमाग चुराता है तो कोई भेट चुराता है! एक दूसरे को देखने के लिए भी चोरी! इधर उधर सब चोरों का बाजार !

भगीरथ: एक प्रेम जालही ऐसा है। प्रेम दो आत्माओं को जोड़ता है।

तालीराम : दो आत्माएं एक नहीं होतीं, लेकिन एक जोड़े की दो आत्माओं से दस से पंद्रह आत्माएं ही उत्पन्न होती हैं! हिन्दुस्तान की हवा में शीर्ष आर्यों का वंश 33 करोड़ फलों से लदा हुआ था, इसलिए नहीं कि उसकी जड़ों पर कुछ शराब छिड़का गया था। प्रेम जल की सिंचाई ने इसे फला-फूला। कहा जा रहा है कि जीवन प्रत्याशा को कम करने के मामले में शराब अधिक महत्वपूर्ण होगी। वह दो आत्माओं को इस तरह मिलाने का आंशिक काम नहीं कर रही है! शराब ने अब तक ऐसे केक का सफाया कर दिया है।

भगीरथ : तो क्या प्रेम के कारण हो रहे प्रेम विवाह से आप शत्रुतापूर्ण हो जाएंगे?

तालीराम : थिएटर और दर्शकों के बीच दीपों की तेज रेखा होती है. नाटक की इस सीमा से परे प्रेम विवाह एक हकीकत पर आ गया है, जिसका मतलब है कि उसके बच्चोंजैसे खेल आधी कीमत पर भी देखने लायक नहीं हैं। मनुष्य कहते हैं नाटक तो दुनिया का चित्र है। लेकिन मैं कहूंगा कि आजकल दुनिया नाटककी तस्वीर बनती जा रही है! प्रेमविवाह के पहले भाग का दूसरे भाग से कोई लेना-देना नहीं है; अगर रिश्ता होता है तो बहुत  पतला। प्रेम विवाह द्वंद्वका जोड है और इसे एक वकील के माध्यम से सुलझाना होता है। जो शादी से पहले हाथ में हाथ डाले भटकने को आतुर हैं, जो सिर्फ धूल देखने के लिए एक-दूसरे की राह देख रहे हैं, वो बादमे एक-दूसरे की आंखों में धूल झोंकने के मौके तलाश रहे हैं! एक-दूसरे को आमने-सामने चुम्मा

कर रहे जोड़े एक-दूसरे का चेहरा देखते ही एक-दूसरे को काटनेका मन करते हैं। और दूसरे के होंठ को अपने दांतों से दबानेके   बिना अपनेही होंठ को काटते  है।

भगीरथ: मुझे लगता है कि आपका मन समग्र सुधारोके बारेमे  बहुत दूषित है। आप पुराने जमाने की शादियों के इतने विरोधी नहीं होंगे?

तालीराम: हाल ही में, मेरा दिमाग इसके खिलाफ जा रहा है। अगले सात जन्मों को एक साथ लाने के उद्देशसे लाए गये वधुवर ऐसा अनुभव दिलाते है की जैसे वे पिछले सात जन्मों से नफरत करने के लिए एक-दूसरे के आमने-सामने आए हों। जिस तरह पुराने तरह की शादी के बंधन लगानेके लिए भाटाभिक्षुकों की आवश्यकता होती है, वैसे ही उसको हटानेके लिए वकीलों-मुंसफों की आवश्यकता महसूस होने लगी है। जैसा कि हम हाल ही देख रहे है, की वैवाहिक कलह के मामले बढ़ रहे हैं। विवाहमे भाटाभिक्षुकों द्वारा दूल्हादूल्हे के चारों ओर लपेटे गए सूत की गाँठ को सिविल कोर्ट में खोलना पडता है और धर्म के मंत्रियों द्वारा किए गए पापों का कानूनसे निपटारा  करना होता है। ऐसा लगता है कि पती ने अपनी पत्नी की ओर देखनेकी दृष्टी इतनी मोड ली है कि अब वेश्या को अपनी ही स्त्री की दृष्टि से देखने वाले पुण्यश्लोक कहना पड रहा है है। और परस्त्रीकी जगह अपनी पत्नीही माँ की तरह लग रही है!

भगीरथ: तुम तो मजाक कर रहे हो, इसलिए इतनी तीव्रता से जवाब देने की जरूरत नहीं है। वास्तव में ऐसी दुनिया में हो रही मायूसी के लिए पूर्वजों को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। हमारे पूर्वज विवाह की बदलती परिस्थितियों के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचने के लिए दृढ़ संकल्पित प्रतीत होते हैं।

तालीराम : कुछ भी कहो, बाकी शादी के कुल बोझ को देखते हुए, अंत में ऐसा लगता है कि दुनिया की सड़क पर चलने वाले एक यात्री के लिए शादी के बोझ में फंसने की तुलना में सार्वजनिक मार्ग  पर जाना बेहतर है।

भगीरथ: वाह! मुझे नहीं लगता कि वेश्यावृत्ति जैसी कोई अन्य अनैतिकता है।

तालीराम : तुम अभी भी अज्ञानी हो। काश, विवाहेतर संबंध में बच्चे को जोड़ने का कोई कारण नहीं होता। इसके अलावा, यदि आप बेईमानी देखते हैं, तो उसको बाहरका रास्ता दिखानाअपनी सरका ने अभी तक बाहरी पत्नियों की दुर्दशा से मुंह नहीं मोड़ा है। इसलिए उसे बेदखल करते समय गुजारा भत्ता देने का कोई कारण नहीं है।

भगीरथ: जाने दो! चार दिन खुशीके साथ जीना चाहता हूं, इतना घिनौना झगड़ा क्यों हो? मैं शराब के खिलाफ कहता हू ऐसा नही। लेकिन यह सच है कि शराब व्यक्ति की ऐसा करने की क्षमता को कम कर देती है, है ना?

तालीराम: यह सवाल लोगों से पूछो। कोट्यनकोटि असली आर्यों का क्लर्क पेशा साहेब के दर्शन के लिए बंगले के बाहर खड़ा है और सत्ताधारी साहब के पास बंगले के अंदर रहते हुए शराब पीने के काम के कारण बाहर आने का समय नहीं है! भगीरथ, आप ऐसे पागल सवाल पूछने का कारण यह है कि आपने  पीनेका काम धीमा किया है। तुम अभी कोई नये नहीं हो। देखिए, भगीरथ, इस घर में नौसिखियों को अपनी प्रतिष्ठा से डरने का कोई कारण नहीं है। हम चार या छह महीने के लिए नए पिनेवालेकी प्रतिष्ठा को संजोते हैं।

भगीरथ: और फिर?

तालीराम: बादमे, उन्हें अपनी प्रतिष्ठा के बारे में कोई वर्जना महसूस नहीं होती है।

भगीरथ: मुझे तालीराम, अब्रू, कीर्ति जैसी चीजोसे कोई डर नहीं हैं. जिसने जिते जी सारे जगतको सदाकेलिए छोडा है उसको इसका क्या लेनादेना है यदि मुझे भर चौक जाने और पीने के लिए कहा, तोभी मैं उसकेलिए तैयार हूं।

तालीराम : शाबाश भगीरथ, हमें आप जैसे उत्साही लोगों को लाना चाहिए। आज़ादी से खाने-पीने की इस समस्या को खत्म करने के लिए हम जल्द ही एक अल्कोहलिक संस्था शुरू करने जा रहे हैं। इसका का मुख्य उद्देश्य शराब के सेवन को संभावित बनाना है क्योंकि शराब ज्यादातर नीचले लोगों के हाथ में होती है। इसको हमे रोकना है। हमने इसे 'आर्यमदिरमंडल' नाम दिया है क्योंकि इसमें सभी धर्मों, सभी संप्रदायों, सभी जातियों और उपजातियों के शराब पीने वाले लोग शामिल हैं। इसके सभी उद्देश्यों का विस्तार से प्रचार-प्रसार कर इसे शीघ्र ही उंचे फाउंडेशन पर खड़ा किया जाना है। मैं आपको सही समय पर बताऊंगा।

भगीरथ: अच्छा तालीराम, मुझे लगता है कि बहुत देर हो चुकी है, मैं अभी जा रहा हूँ।

तालीराम : बहुत कुछ बाकी है, खत्म करो और फिर जाओ।

भगीरथ : इस गंध की वजह से रास्ते में अकारण ही घोटाले होते हैं.

तालीराम: रुको, मै एक तरकीब बताता हूगीता बाहर आओ (गीता आती है।)

गीता: (स्वगत) आज मुझे गीते नामसे नही पुकारा। मुझे नहीं लगता कि रागरंग अभी तक ठीक हो गया है!

तालीराम: गीते, चलो उसके लिए कुछ सौंफ लाते हैं! भगीरथ, यह सांसों की दुर्गंध के लिए रामबाण है। (गीता जाती है।) तो क्या? क्या आप 'आर्यमदिरमंडल' का समर्थन करेंगे? हमें सभी लोगों की मदद की जरूरत है।

भगीरथ: इस दुनिया में, मुझे कोई संयम नहीं है। (गीता आती है। तालीराम उससे से सौफ लेकर भगीरथ को देते हैं, भगीरथ जाते हैं।)

गीता: क्या तुम आज रावसाहेबके यहा गए थे? बाईसाब के भाई पद्मकदा उन्हें मायके ले जानेके लिए आए हैं। बाईसाब के साथ शरदिनीबाई भी जाएंगी।

तालीराम: वे कल जा रहे हैं, और आज क्यों परेशान? खैर, मैं कल परसो एक क्लब स्थापित करना चाहता हूं, जिसके लिए मुझे यथासंभव भुगतान करना होगा; तो क्या घर में कुछ है?

गीता: अब तुम और मैं घर पर रह गए हैं! घर में जेवर बहुत थे! पिता ने सोने का ढेर बनाकर सोने का घर बनाया था; लेकिन आपके आशीर्वाद से साहूकारोंने से भरा घर लूट लिया! यह होने दो, लेकिन मैं पूछती हूं, तुमने सब कुछ कैसे बेच दिया?

तालीराम: इसमें क्या मुश्किल था! आधा माल बेचने से हम और गरीब होते गए, और जैसे-जैसे हम गरीब होते गए हमने अपना बाकी माल बेच दिया!

गीता: आपको एक अच्छी पढ़ने-लिखने की आदत थी; लेकिन सारी किताबें भी बिक गईं!

तालीराम: तुम्हारे पास कोई दूरदृष्टि नहीं है! यह शिक्षा का युग है, आप जानते हैं? अकाल के दिनों में परोपकारी लोग बाजार भाव से अनाज खरीदते हैं और गरीबों को सस्ते दामों पर बेचते हैं। उसी तरह, कौन कहेगा कि गिरती कीमत पर जरूरतमंद पाठकों को महंगी किताबें देना बुरा है? छात्रोंको नाटक को आधी कीमत पर छोड़ देनेसे आधी कीमत पर किताबें देन अच्छा है, समझे?

गीता: आपके मुख पर बैठी हैं सरस्वती! तस्वीरें भी घर में नहीं रखी थीं। अरे, जन्म पिता की तस्वीर, लेकिन उसने भी चार आने बेचे!

तालीराम : तो पिता की कीर्ति बढ़ी या घटी? ओह, आजकल बाजार में आपको शिवाजी, बाजीराव, और भी कई, देवदिका जैसे महात्माओं के दो आनेमे चित्र मिल जाएंगे। क्या आपको लगता है कि हमारे पिता उनसे ज्यादा थे?

गीता: आप एक इंसान के रूप में पैदा हुए हैं इतनाही! किसी को भी सुबह उठकर आपका चेहरा नहीं देखना चाहिए!

तालीराम : हां,  तेरा मुंह ज्यादा हिलने लगा।

गीता: हा! बहुत मान रखा था! बाघ कहे जाने पर भी खाता है और वाघोबा कहे जाने पर भी खाता है! मैं ऐसेही बात करती रहूंगी! आप क्या करेंगे?

तालीराम: क्या करोगे? मेरे पास ऐस कोई उधार बात नहीं है! यदि तू ऐसेही बोलती रहेगी, तो मैं तुम्हारे एक मुंह के दो मुंह बनाऊंगा, और दो बार कर्ज चुकाऊंगा! अतिरिक्त बातचीत मत करना. अगर कोई गहना घरमे है तो यहा लाओ

गीता: इतना मणिमंगलसूत्र बचा है!

तालीराम: तो इसे यहीं छोड़ दो। एक आभूषकी ही बारात निकालने का मतलब है कि हमारी गरीबी के साथ-साथ मन का हल्कापन भी लोगों की नजर में आ जाता है। गहनों से सुशोभित धनवानों के स्थान पर अलंकार का अभाव चन्द्रमा के कलंक के समान सुन्दर दिखाई देता है।लेकिन गरीबने एकही गहना अंगपर रखा तो वह काले बदनपर सफेद कोडजैसा दिखता हैदे दो वो मंगलसूत्र

गीता: आह, लोगोंकी, धर्म की, कुछ चाड रखो! क्या मैने इस मंगलसूत्र को अपने गले में अपनेही नाम पर बंधा हैं?

तालीराम : सौभाग्य के लिए सोने की मोतियों की कोई कीमत नहीं होती है. मणीमाला गर्दन में है! सौभाग्या, तुम्हारे सौभाग्याको  मै कुछ नही करता! मैने मणीमाला नही मांगी, धागाभी नही मांगा?खाली सोनेके मणी तोडके लेता हू! किसी स्त्री का मंगलसूत्र किसी जनव की ब्रह्मगठिका नहीं, गले में भी होना चाहिए!

गीता: हाँ, यह सही है। महिलाओं का भाग्य कहाँ है? जनव की ब्रह्मगाथा दिखाने का अर्थ है कि आप जैसे ब्रह्मराक्षस कलाई छोड़कर भाग जाते हैं।

तालीराम: हाँ, यह सही है! मंगलसूत्र का सोने का मणी दिखाया तो वही ब्रह्मराक्षस ऐसा गला दबाता  है। (तालीराम सिर झुकाकर मणी निकालने लगत हैं।)

गीता : देव ! दौड़ो दौड़ो!

तालीराम : भगवान में इतनी ताकत भी नहीं है कि पतीपत्नी के एकांत में आ सकें! (मंगलसूत्र को तोड़कर मनका निकालने लगता है, गीता रोने लगती है।)

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