प्रवेश पांचवां
(स्थान: सुधाकर का घर। पात्र: सुधाकर और तालीराम।)
सुधाकर: (स्वगत) चौबीस घंटे बीत चुके हैं, सिर पर सिर्फ घाव हैं! कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं।
(राग- तिलंग; ताल-आडा-चौताल. चाल- रघुबिरके चरन.)
जड बधिर हृदय शिर, भयकर मतिसंकर।
तनुदहनहि खर॥
ध्रु.॥
नारकहुताशन। दाह का घोर।
जळी वा प्रलयकर-।
रविकिरणनिकर॥ 1॥
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(मेज पर सर रखकर बैठ जाता है।)
तालीराम: (आकर) दादा साहब!
सुधाकर : तालीराम, मै कुछ भी सोच नही सकता।
तालीराम : दादा साहब, इस दुनिया में आपदा तो आतीही रहती है!
सुधाकर : तालीराम, आपको ऐसा क्यों लगता है कि मुझे ऐसी आपदाओं की परवाह है! मैं इस अपमान की आपत्तीको बर्दाश्त नहीं कर सकता! बूरे लोग उपहास करे, लब्दाप्रतिष्ठितथुक्का फजीहत करे, दुश्मन संतोष से हंसें! तालीराम, मैने कुबेर का धन पाव से उड़ा दिया होता, और हाथ से वापस लाया होता! लेकिन इन अपमानों को बर्दाश्त नहीं किया जाता है।
तालीराम : कल चार दिन बाद यह बात भूल जाओगे।
सुधाकर: भूल जाओ? रहने भी दो! मरते दम तक रहेगा इस सांप के काटने का दर्द! नहीं, बस... आग जल रही है! आत्महत्या को कायर कृती कहा जाता है. इसके अलावा, आत्महत्या करके मैं सिंधु के शरीर से खो बैठूंगा।तालिराम, शरीरको नष्च किये बिना मृत्यु देनेवाला कोई जहर है
तालीराम: ऐसा कोई जहर नहीं है, लेकिन ऐसा अमृत है! दादासाहेब, मैं उसके लिएही आया हूं। आपको औरोके भ्रामक विचार अपने पास रखनेवाले नही हो। आप अपने दिमागसे काम करते है। खाली लोग क्या कहेंगे ऐसा सोचके आप घबरानेवाले नही है इसलिए मै आपसे मुलाकात करनेका धीरज करता हू। अगर आप अपने दुख को थोड़ा सा भूलना चाहते हैं, तो इसका इलाज है! आप गुस्सा तो ना करोगे? इलाज बताऊ?
सुधाकर: बताओ, मुझे कोईभी इलाज बताओ!
तालीराम : थोड़ी शराब लो और लेट जाओ।
सुधाकर: क्या शराब? तालीराम-
तालीराम: हाँ, शराब! इतना अचरज करने का कोई कारण नहीं है! मैं यह भी मानता हूं कि शराब एक आदत के रूप में बहुत खतरनाक और निंदनीय है। लेकिन आपको वो खाली दवाकेलिए लेनी है और वोभी बहुत छोटी मात्रामे! इतनी खम लेनेसे आपको इसकी आदत लगेगी ऐसी की मूर्खता से डरने का कोई कारण नहीं है।
सुधाकर: नही, नही। मुझे आदत का डर बिल्कुल नहीं है! वैसे भी, मेरा सर्वज्ञ मन इस बात की गवाही देता रहेगा कि मैं ऐसा विलासिता के लिए नहीं कर रहा हूँ। सिंधु, रामलाल की समझ मे- जाने दो - क्या मुझे कुछ राहत अवश्य मिलेगी?
तालीराम: बिल्कुल।
सुधाकर : तो लाओ- मैं इतना कमजोर दिमाग वाला नहीं हूं कि इसकी आदत हो जाए। मैं सबको समझा सकता हूं, लेकिन इस बार मैं अपनी समझ नहीं रख सकता। चलो, वह कहाँ है? इस यमयातना को एक घंटे के लिए भूलने के लिए जो भी करना पड़े, मैं करने को तैयार हूं।
तालीराम : मैं ठीक लाया हूँ, यह लो। (ग्लास भरने लगता है।)
सुधाकर: ओह, अधिक भुगतान मत करो।
तालीराम: हाँ, हाँ, बहुत कम! बस - बस - एक कप! (सुधाकर शराब पीने लगता है। पर्दा गिर जाता है।)
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