पहला प्रवेश
(स्थान: सुधाकर का घर। पात्र - सिंधु बच्चे को गोकर्णसे दूध पिलाती रही है। पासमे शरद है।)
सिंधु: यह क्या है? दूधसेभी ऐसी दंडगई क्यो? हो गया, लताडा गोकर्ण! पकडू क्या तुम्हारा ये छोटसा कान? रुको बेबी, यह आपको एक गीत गाके घास भर देती हू! ध्यान से सुनो! अगर आप गड़बड़ करते हैं, तो मै नही गाऊंगी? आपको अन्नके दूसरे घूंट के साथ दूध का एक घूंट भी लेना होगा।
(चलो, ले लो, नारायण।)
बच्चा घास से घिरा हुआ है।
गोविंद गोपाल। भारवी यशोदामाई। सावन नंदब घेई॥ धृ .॥
घी कोंडा-कनी त्रिलोक्य के स्वामी हैं। विदुरावरी का। पहली घास। 1
पोहे मुट्ठी। क्षीरब्धि की हरी। मित्र सुदामजी। यहाँ दूसरी घास आती है। 2
थाली एक ही है। इसे विश्व नेता ले लो। द्रौपदीमाई की। यहाँ तीसरी घास आती है। 3
बाकी ऊंट। फलों का बगीचा। शबरी भिलिनी की। चौथी घास लें। 4
ताकू लहराया। मुखचंद्र से। गोविंदगराज का। उरलासुरला घास। 5
ह, बिल्कुल, हाँ, अभी हो गया। फिरसे डंडगाई शुरू हो गई? एक बार, ध्यान रखना, भाभी सम्हालो ये तुम्हारा रत्न! आपके लोग बहुत चंचल है! नहीं तो रुको। इसे देखो, गीताबाई, बच्चे को झूलेमे सुला दो! (गीता आती है।)
हाँ, गीताबाई को देखते ही हँसने लगा! इधर-उधर घूमनेको मिलता है गीताबाई के साथ ! (गीता बच्चे को ले जाती है।) भाभी, सुबह से भाई को दो या तीन फोन किया। आता हॅ ऐसा कहते हैं, फिर अभी तक क्यों नहीं आये? भाभी, मुझे तो कोई अजीबसा सपना नजर आ रहा है।
शरद: वाहिनी, आप विना किसी वजहसे चिंता करते हो। अगर कल्पित सोचने से मन उदास हो तो, खाया गया भोजन भी अच्छा नही लगेगा ।
(राग: भीमपालस, ताल-त्रिवत। चाल-रे बलमा बलमा।)
दिल का धोखा। भ्रमपूर्ण मनोरंजन धुरु .॥
मातृजावन झिजावुनी जगती। वह अंत के साथ मर गई। 1
सिंधु: कुछ भी कहो, कुछ भी समझाओ। लगता है मेरे दिमाग का धीरज खत्म हो गया है। जिस दिन से अपने भाई का तार मिला है, उसी दिन से हृदयको झटका लगकर मनको चिंता लगी है।
(रागा- कफी-जिला, ताल-त्रिवत। चाल- इतना संदेश वा।)
दहती बहू मन नाना कुशंका। धुरु .॥
आपदा भयानक है।
विलोकी के पास।
सिहरन गणित मत करो। 1
शरद : मन की चिन्ता से लेकर शत्रु की चिंता तक, तुम्हारे साथ यही चल रहा है! वाहिनी, देखो भाई आ गया! (रामलाल आता है।) भाई साहब, देखो भाभी कैसे रो रही है! उन्हें धैर्य की चार बाते सुनाकर समझाओ!
रामलाल: (स्वगत) कल रात मैंने जो देखा, वह सिंधु को किस मुहसे बताऊंगा? इससे बचने के लिए आप कितना भी प्रयास करें, यह मृत्यु अवश्यंभावी है!
सिंधु: भाई, समझे नहीं? डरने की कोई बात नहीं है, है ना? तुम इतनी खामोशी के साथ क्यों खड़े हो? क्या हुआ मुझे जल्दी बताओ!
रामलाल: ताई, इतनी जल्दी मत करो। बच्चे जंजीर का खेल खेलते हैं। क्या आपने इसे देखा है जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ेगा बच्चा एक बच्चे को जोड़कर अपनी जंजीर नहीं बांध पाएगा। तो यह इस दुनिया के साथ है। जैसे-जैसे दुनिया बढ़ती है, वैसे-वैसे समस्या भी होती है, और मन जिम्मेदारी से ग्रस्त हो जाता है, और मनुष्य को बचपन की चंचलता को दूर करते हुए हर तरह से धीरे-धीरे चलना पड़ता है।
सिंधु: भाई, आप ऐसे क्यों बात करने लगे? बता दें, मेरे नसीबमे क्या क्या लिखा है.....
रामलाल : सिंधुताई, अगर हम जाने कल क्या होगा, तो दुनिया नीरस हो जाएगी। इसलिए नसीबने माथे पर भाग्य लिखा है जो आंखों के लिए अदृश्य है। रुद्रशक्ति के ज्ञान से पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की इच्छा रखने वाले महेश्वर को अपने माथे पर लिखा हुआ लेख पढ़ने में सक्षम होना चाहिए, इसलिए उनके माथे पर तीसरे नेत्र का लाभ हुआ है। यह त्रिकालग्य तृतीय नेत्र हम मनुष्यों के माथेपर नहीं है!
(राग: खमाज; ताल-पंजाबी; चल- पिया तोरी।)
जैसे सभी आपको कामयाबी
मिले प्रभु की योजना। धुरु .॥
हे मनुजा। जानबूझकर प्रभु
सद्बुद्धि देते हैं या नहीं। 1
सिंधु: भाई, अब मेरी जिंदगी ठहर सी गई है! मुझे सुनने दो कि तुम क्या सुनाना चाहते हो!
(राग-जिला-पीलू; ताल- कवाली। चाल-कनैया खेले होरी।)
कृप्या दयालु बनें।
खासा ही पड़ी लगे। धुरु .॥
पल एक छोर। देरी को उड़ा दिया जाएगा। हे कमजोर दिल! 1
रामलाल: ताई, मैं तुम्हें क्या बताऊँ? अपने सुधाकर को आदत - एक बहुत ही भयानक आदत - (स्वगत) क्रूर भगवान, आप मुझसे क्या कहना चाहते हैं? इस पवित्र देवता के सम्मुख किस मुख से 'शराब' शब्द का उच्चारण करूँ? अरे चांडालों, क्या आपको पता है कि आप अपने करीबी दोस्तों को किस तरह के संकट में डाल रहे हैं? प्रभु, आपने मुझे उसके हृदय पर इस शराबी भाषण को थोपने के बजाय एक जहरीले तीर से उनके दिल को छेदने का काम क्यों नहीं दिया? (खुलकर) सिंधु, सुधाकर को है शराब की आदत!
सिंधु: भगवान, मैंने क्या सुना? (वह बेहोश होने लगती है, शरद और रामलाल उसे पकड़ लेते हैं।)
रामलाल: ताई, सिंधुताई, सावधान रहना!
सिंधु: भाई, भाई- (भागीरथ जल्दी से प्रवेश करता है।)
भगीरथ: भाई, आपदा आ गई। सुधाकर शराब पीकर ऑफिस गए, जो चाहे वो बात करने लगे और मुन्सफा ने उनका चार्टर स्थायी रूप से रद्द कर दिया।
रामलाल : अब तुम आपदा की परंपरा के लिए तैयार रहना चाहिये। ताई, सिंधुताई- (तालीराम सुधाकर को लाता है।)
सुधाकर : घर में रोनाधोना क्या है? कौन रो रहा है क्योंकि चार्टर चला गया है? वह एक कमजोर पत्नी है। तालीराम, हरएकको लात मारकर इस भीड़ को तोड़ो। (नीचे बैठता है।)
रामलाल : शरद, तालीराम, सुधाकर को अंदर ले जाओ और सो डालो।
सुधाकर: चार्टर के चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं नपुंसक नहीं हूं- यह रामलाल नपुंसक है- सिंधु नपुंसक है- सनद नपुंसक है! (वे उसे दूर ले जाते हैं।)
रामलाल : ताई, बदकिस्मत लड़की! चल। यहाँ से तुम रोनेसे भी तृप्त नहीं होगी (उसे पास लेकर) बेटा, यह ईश्वर की कृपा है।(तालिराम आता है) तालिराम, अभी के अभी यहॉसे निकल जाओ, कभी इस घरमे अपना कदम मत रखना. नही तो तुम्हारी खैर नही. चलो सिंधूताई।
(राग- ललत, ताल- त्रिवट. चाल- पिया पिया)
गमसि खरी हतभागिनी।
जीवनमंगलहेतु तव
जरी।
स्वकरि लोटी तुज
दुर्गतिदहनी॥ ध्रु.॥
रोदन हेचि जगी हतभागा।
विश्रांतिसी
चित्ताते जागा।
तीसह पति करि तव
हृद्भंगा।
मंदभाग्य तू तुजसम
भुवनी॥
(जातात.)
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