प्रवेश III
(स्थान- बंडगार्डन। पात्र- सुधाकर और अन्य मंडली।)
सुधाकर : कैसी अद्भुत स्थिति है मेरी! इस बाग़ की ख़ूबसूरती मुझे बचपन से मालूम है; लेकिन आज उनका एक नया रूप नजर आ रहा है. पतित मन में प्यास के कारण खुली आँखों से सुंदर लेकिन निर्दोष वस्तु को देखने का धैर्य नहीं है! आज मैं एक अंग्रेजी कहानी में बीस साल की निर्बाध नींद से उठकर पहली दुनिया को देख रहे एक आदमी की अजीब मनःस्थिति का अनुभव कर रहा हूं।इस बाग़ का क्या, पर पूरी दुनिया को देखकर मेरी नज़र में यह भीतरी कुरूपता कम नहीं होती।
शराब जैसी हल्की वस्तु की आदत से, मुझे एक साधारण समाज से, एक प्रतिष्ठित स्थिति से, उन्हीं लोगों से - यहां तक कि उन्हीं लोगों से उठाया गया था उस दुनिया में ले जाते वक्त मैं एक चोर की तरह महसूस करता हूं। क्या मुझे फिर से इस खूबसूरत दुनिया में अपनी जगह मिलेगी? जबकि मेरे मुंह से अभी भी शराब की गंध आती है, क्या पूर्व आश्रम में मेरे करीबी भाई भी मेरे मुंह को जान पाएंगे? क्या मेरी खोयी हुई जगह अभी भी शराब से मेरी आँखों की अस्पष्ट दृष्टि से खोज पाउंगा? मेरा दोषी मन जो हजारों शंकाओं के कारण अपनी धीरज गंवा चुका हैं, उन उदार सज्जनों के सामने भी शरण लेने की हिम्मत नहीं करता, ।
यह सच है कि एक यात्री, जो लंबे समय से विदेशी जगह पर रह रहा है, अपने गांव में घूमते हुए, या एक रोगी जो लंबे समय से बिस्तर पर बीमार है, अपने घर में घूमते हुए, ऐसी अपुरी नवीनता महसूस करता है; लेकिन पहले को अपनों के दर्शन की लालसा कहाँ और दूसरे के लिए पुनर्जन्म का निर्दोष आनंद, जो पवित्र धैर्य देता है, वैसा आनंद गंदी लत से कमजोर हुए पश्चाताप को पाता है? आज कोई कैसे नहीं यहा आता? (देखकर) शराब के निशान अभी भी हैं। ऐसे में निर्व्यसनी दुनिया में नहीं जाता, इसलिए मैं यहां उन भारी-भरकम लोगों से मिलने की उम्मीद के साथ आया था, जिन्होंने मुसीबत में बार-बार मेरी मदद करने का वादा किया था। उफ़, लेकिन ये लोग इस बार यहाँ क्यों आए? (शास्त्री और खुदाबख्श आते हैं।)
शास्त्री: अच्छा किया, सुधाकर, शुभकामनाएँ! मैं तुम्हारी तलाश में थक गया हूँ! आखिर में मैंने सोचा, पीतेपीते बीच में तुम कही नशेमे बैठे होंगे और कौन जाने वाला है?
खुदाबख्श : सारी सभाएं, अखाड़े चलके आया. ग़लत फ़कीर मस्ज़िद में मिलता है इस कहावतके अनुसार को ढूँढ़ने के लिए सारे शराबके ठिकानोपर भी जाके आया!
शास्त्री: शराबके गुटटेक देखे; वहॉकी बोतलें नहीं!
खुदाबक्श: अरे यार, सब नाले की मिट्टी भी हटा कर देखा; पर तुम्हारा कोई पता नहीं है!
शास्त्री: खैर खान साहब, अब और समय बर्बाद मत करो। सुधाकर, जैसे-जैसे तालीराम की बीमारी बढ़ रही है, इसलिए उसकी हालतपर नजर रखनेके लिए वहॉ बारी-बारी से बैठना है। इसलिए इसका शेड्यूल तय करने के लिए आपको अपने बोर्ड की एक विशेष बैठक करनी होगी, इसलिए क्लब में जल्दी आएं।
सुधाकर: भले ही तालीराम की जान मर रही हो, मैं अब क्लब में नहीं आना चाहता!
खुदाबख्श : ऐसी झुंझलाहट क्यों? खाली मुलाकात नहीं है( पिनेका भी इल्तजाम है)!
सुधाकर: मैंने तुमसे एक बार कहा है, मैं नहीं आऊँगा! आज नहीं, पर मैं कभी नहीं आऊंगा!
खुदाबख्श: या:! अगर आप नहीं हैं, तो बैठक का कोई रंग नहीं है! बर्फ के बिना व्हिस्की जैसा तुम्हारे बिना मज़ेदार नहीं है!
सुधाकर: क्या, मैं आपको कैसे बताऊं? मैंने शराब पीना छोड़ दिया!
दोनों: क्या? छोड़ा है? इसके बाद?
सुधाकर: हाँ, इसके बाद!
शास्त्री: आप किस बारे में बात कर रहे हो? तुम इतने नशे में कभी नहीं रहे! क्या आप शराब पीना छोड़ देंगे? अरे दीवाने, एक बार जब आप एक चीज अपने करीब पा लेते हैं, तो वह छोडना किस तरह की समझदारी है? हे- स्वधर्मे निधानं श्रेया: परधर्मो भयवाह:! क्या?
खुदाबख्श : आपने अच्छी बात कही! अरे यार, 'अपना तो अपना!' चलो, छोड दे ये पागलपन। (सुधाकर कुछ नहीं कहता।)
शास्त्री : चलो, खानसाहेब, गरम काच को अपने आप ठंडा होने देना ही बेहतर है! अगर आप इसे ठंडा करनेके लिए पानी डालेंगे तो यह अचानक टूट जाएगा! यह थोडी देरका अफसोस है। दाह संस्कार से सिर पर रखी राख ज्यादा देर तक नहीं टिकती। धैर्य रखें, यह अपने आप सड़क पर आ जाएगा। सुधाकर, हम जा रहे हैं; लेकिन अगर आप अपने आप क्लब में नहीं आते हैं, तो मैं इसे यज्ञोपवीत हटा दूंगा, इस ब्रह्मवाक्य को याद रखना! (शास्त्री और खुदाबख्श जाते हैं।)
सुधाकर: (स्वगत) मैं आज तक इन क्षुद्र कीड़ों के साथ शराब के नाले में तैर रहा था, है ना? लेकिन उन्हें दोष देने का क्या मतलब है? तथ्य यह है कि जले हुए उल्कापिंड मिट्टी के साथ मिल जाते हैं और चट्टानों की एक पंक्ति में बैठ जाते हैं, वह स्वयं ही पतन के लिए जिम्मेदार है। जाने दो उनके बारे में सोचना भी - इतना भी नहीं - इन दोनों के सभी विशेषण मुझ पर लागू हों - मुझे ऐसी स्थिति में होनेके लिए - काश! कितनी भयानक स्थिति है! मै इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। आज मैं शराब के समुद्र से बाहर निकलने के लिए समुद्र के किनारे बैठे उसी अक्षम आदमी के पैरों का सहारा पाने के लिए संघर्ष कर रहा हूं, क्योंकि बुद्धि के तीव्र अभिमान होतेहुए मैने मेरे अधिकांश साथीयोंसे कभी हाथ मिलाने की कोशिश नहीं की थी ।
(एक गृहस्थ आता है।) सुधाकर, इस मतलबी आदमी को खुश करने के लिए, अपने चेहरे पर एक निराशाजनक मुस्कान लाकर कृत्रिम रूप से शब्द फैलाने के लिए तैयार रहें! (नमस्कार करता है; वह गृहस्थ का अभिवादन किए बिना चला जाता है - स्वागत) उफ़! निर्मम दुर्भाग्य, क्या आपके पास सुधाकर के स्वाभिमान को मारने के लिए इस लापरवाह हत्या के अलावा कोई हल्का उपाय नहीं था? आपने शुरुआत में इस आखिरी हथियार की योजना क्यों बनाई? (एक और गृहस्थ आता है।)
एक और गृहस्थ : (सुधाकर की ओर देखते हुए) देखो क्या दर्द है! यह आदमी क्यों सामने आया? अगर कोई मुझे इस भिखारी शराबी के साथ खुलकर बात करते हुए देखता, तो लोगोंमे मुझपर छींटे पडेगी! अब इस पीडा से कैसे बचें? बिल्ली बीचमे आती है तो तीस कदम पीछे चल देना चाहिए, अगर कोई विधवा रास्तेमे मिलती है हो तो चूप हो जाए, बच्चा हो तो उसे मार देना चाहिए, लेकिन अगर यह हमारा अपना पाप है, तो कैसे करें इसे पीछे हटाना किसी शास्त्र में नहीं बताया गया है। चार शब्द बोलकर पत्थर को हटाना चाहिए। (सुधाकर उसका अभिवादन करता है। उसका अभिवादन करता है और शुष्कता से मुस्कुराता है) सुधाकर कौन है? बहुत खूब! ख़ुशी! (जल्दी से शुरू होता है।)
सुधाकर: रावसाहेब, आपसे कुछ शब्द-
दूसरा गृहस्थ : अभी मैं थोड़ा जलदीमे हूँ- यह दादा साहब आ गये- (जाता है।)
सुधाकर: (स्वगत) इस दुष्ट संभावित दिखावेसे पहलेने किया अपमान सहनीय था। अगर खड़ी दुनिया अपनी ईमानदार मुस्कान से मुझसे नफरत करती, तो भी उसकी कर्कश हंसी मेरे दिल को ठीक नहीं करती। यह तीसरा मामला है। कोई दिक्कत नहीं है। मैंने एक के बाद एक अपमान के इन सभी चरणों पर चढ़ने का मन बना लिया है। (एक तीसरा गृहस्थ आता है। वे एक दूसरे को नमस्कार करते हैं।)
तीसरा गृहस्थ: तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है आपको कही देखा था ऐसे लगता है
सुधाकर : दादा साहब, मेरा नाम सुधाकर है।
तीसरा गृहस्थ : सुधाकर! नाम भी सुनासा लगता है। आपने क्या कहा सुधाकर है ना?
सुधाकर : दादा साहब, सोचने की कोई बात नहीं है। हम बहुत बार मिले है।आर्य मदिरा मंडलके बैठकमे आपने भाईकी तरह संकट के समय मेरी मदद करने का वादा किया है। दादासाहेब, आज मैं वास्तव में संकट में हूं और इसलिए मुझे उन शब्दों को याद रखना पड़ रहा है।
तीसरा गृहस्थ : बेशर्म दोस्त, अच्छी बात सही जगह। याद दिलाने में तुम्हें शर्म नहीं आती? मूर्ख, तुम्हें इस बात से सावधान रहना चाहिए था कि पहले तो मैंने तुम्हें पहचाना ही नहीं! शराब की सभा में किए वादे, परिचितों से किए गए, इन सभी को फेंक दिया जाना है, जैसे शराब का टूटा गिलास, खदान में टुकड़े की तरह। अँधेरे में शराबी दोस्ती अगर ऐसे उजाले में पनपने लगे तो तुम्हारी तरह मुझे भी बदनाम होना पड़ेगा। शराब के सबसे हल्के रूप में हमें अपने साथियों की मदद नहीं मिलती है, इसलिए हमें आप जैसे हल्के लोगों में बड़े लोगों को मिलाना पड़ता है! इसके बारे में बस इतना ही। लिविंग रूम में कोई पाइप नहीं डालता। हम सब शुरू से ही जानते हैं कि आप जैसे बेचारे शराबी बड़ों के बीच दोस्ती की उम्मीद में जानबूझकर इस आदत से जुड़ते हैं। चले जाओ मेरे जैसे किसी व्यक्ति को ऐसी स्थिति में मत डालो। (जाता है।)
सुधाकर: (स्वगत) दुर्भाग्य से, सुधाकर की बेशर्मी अभी भी थोड़ी सुस्त है। (चौथा गृहस्थ आता है-नमस्कार।) रावसाहेब, मैं आपसे दो शब्द कहना चाहता हूं। मेरा नाम सुधाकर है! मेरा चेहरा ऐसा लग सकता है कि आपने इसे कहीं देखा है, लेकिन वास्तव में यह आपका पूरा परिचित है।
चौथा गृहस्थ : सुधाकर, इतनी जोर से बोलने का क्या कारण है? आप हमारे भाई जैसे हैं और हमसे ऐसी बात?
सुधाकर : आपके उदार मन को ठेस पहुँचाने के लिए मुझे क्षमा करें। लेकिन जिस दवा का अब मैं अनुभव कर रहा हूं उसकी कड़वाहट अभी भी मेरे मुंह में है। अगर आपको इस मौके पर मिले अपने सबसे अच्छे दोस्त का नाम याद नहीं है, तो आप अपनी सुविधा के लिए उसपर टीका शुरू कर दें, यह दुनिया का राजमार्ग है। यदि परिचित का चेहरा मेल नहीं खाता है, तो इसका मतलब है कि उसे इतना परखना है कि फर्म के क्लर्क को भी बिल पर हस्ताक्षर की पुष्टि करते समय इसे आगे रखना चाहिए।
लेकिन जाने दो। आप जैसे अच्छे आदमी के लिए यह सुनना अशिष्टता होगी। रावसाहेब, मैं आज अजीब स्थिति में हूं। मुझे नौकरी चाहिए! रावसाहेब इतना भीख मांगता हूँ कि कहीं नौकरी मुझे निला दो; मेरा मतलब है तीन आत्माएं- (गला घुट जाता है।)
चौथा गृहस्थ: आपको नौकरी - सुधाकर - हम आपको कौन सी नौकरी दे सकते हैं? आपकी विद्वता, आपकी चतुराई, आपकी योग्यता-
सुधाकर: मेरी योग्यता के बारे में ये महान विचार क्यों? मेरी क़ीमत किसी जानवर से भी कम है! पट्टावाला का, हमाल का, किसी तरह का काम - रावसाहेब, तीन पेट का सवाल है, इसिलिए चिंतित हूँ! यदि नहीं तो अपने पेटके लिए गधे कुम्हारकी मिट्टीभी ले जानेको तैयार हूँ!
चौथा गृहस्थ : आप हमारे लिए भाई समान हैं - हम आपके लिए क्या कर सकते हैं? नौकरी है- प्रति माह पंद्रह तक-
सुधाकर: बहुत हो गया - रावसाहेब –
चौथा गृहस्थ: लेकिन दुकान का प्रबंधन करना ठेकेदार पर निर्भर है। खोरी, फावड़ा, हाँ, नहीं - मेरा मतलब है, आज मैं तुम्हारे हाथों में पचपन का चल माल खेलता था और - नाराज मत हो। सुधाकर, आप हमारी रीढ़ की हड्डी की तरह हैं! आपके पास झूठी भाषा नहीं है - आपको उस स्थान पर एक बहुत ही योग्य, ईमानदार व्यक्ति की आवश्यकता है - हाँ, एक चालबाज है और उसने नशे में कलाल को दो दाग दिए - कम से कम उसे जमानत की जरूरत है!
सुधाकर : तो फिर आपको मेरे लिए जमानत करनी होगी-
चौथा गृहस्थ : अब क्या कहें? सुधाकर, आप हमारी रीढ़ की
हड्डी की तरह हैं! मैं आपको साफ-साफ बताना चाहता हूं- ये देखिए, आपको तो शराबकी लत है, आपकी जमानत धोती में
धोती लेकर घूमने की तरह है- हां, आप बताए नशे के आधीन लोगों पर आप क्या
भरोसा करते हैं? तो, मै आपसे हाथ जोडकर बताता हूँ कि इस संकट में मत डालो, मेरे रीढ़ की हड्डी
वाले भाई की तरह, आप हो- मु
झे आपको ना कहना उचित नही लगता - लेकिन आप कोई और को - हाँ, यह भी, वास्तव में, और कौन मिलेगा ? हाँ मालूम होते हुए
कांटेपे पाव रखना बहुत मुष्कील है। इसके लिए दुनिया है! आप हमारी रीढ़ की तरह हैं!
इसलिए हमें आपको उपदेश करने का अधिकार है - शराब
पीना अच्छा नहीं है। शराब होगी तो आदमी का नाम बरबाद होता है! कोई चौखट पर खड़ा
नहीं करना चाहता,
कोई सच्चे हमदर्दों उसे मिलना नहीं चाहता - सब दादाजी बाबा के रूप में
लंबा बोलेंगे - आपको पाठ के भाई का परिचय देंगे - आप हमारे पाठ के
भाई के रूप में आपको बताना चाहते हैं - सुधाकर , तुम शराब छोड़ दो! ठीक है अब जाता हूँ यह समय है!
सुधाकर: (स्वागत) बस! अब मुझमें दुर्भाग्यपूर्ण दशावतार को देखने की ताकत नहीं है! जिस किसी को अभी भी मेरे आस-पास बुरे सपने आते हैं, उसे मुझे शराब पीना बंद करने की सलाह देनी चाहिए! क्या जिस व्यक्ती जो एक जूते के पास खड़े होने के लायक नहीं है, क्या वह मुझे जुतेका मोल देता है? जहॉ दरिद्र ने मुझे जूतोसे रौंदा है, वहॉ नेक आदमी की हमदर्दी कैसे मिलेगी? हम यह मुह किसी को कैसे दिखा सकते हैं जिसे नशे में दोस्तों ने पीटा है? मैं किस हैसियत से अपनी भूखी सिंधु के सामने जाकर खड़ा हो जाऊं, जो संघर्ष कर रही है? मूर्ख पिता - अक्षम पति - मिट्टी का आदमी - आधा मन का शराबी - भगवान, भगवान, आपने इस सुधाकर को क्यों जन्म दिया, और इसे जन्म देकर जीवित रखा? मुझे क्या करना कहाँ जाना है इस दुनिया से कैसे निकले? मौत के गले में मगरमच्छ को कैसे मारें? लेकिन एक स्वस्थ मन भी आत्महत्या के लिए मौत के कठोर रूप को देखने से डरता है। फिर नशे में धुत कमजोर दिमाग को इतनी हिम्मत कहां से मिलेगी? शराब ही मौत का एकमात्र रूप है जो एक शराबी को पता है! शराब ही दुख की पीड़ा को रोकने का एकमात्र तरीका है! निराशा को निर्वाणी का, बच्चों के साथ मानवता को, सिन्धु के साथ संसार को, सद्गुणों से सुखी को, जगत् के साथ जगदीश्वर को यह अन्तिम नमस्कार है! अब एक शराब-मृत्यु तक शराब-अंत तक शराब! (जाता है। पर्दा गिरता है।)
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