प्रवेश IV
(स्थान: तालीराम का घर। पात्र: शास्त्रीबुवा, तालिराम बीमार, और उनके दोस्त आदि)
खुदाबख्श : क्या शास्त्रीबुवा, डॉक्टर - वैद्य मिले?
शास्त्री: लगता है मिल गया। लेकिन इसे खोजने में बहुत मेहनत करनी पड़ी! पहले तालीराम एक डॉक्टर का या वैद्यका नाम नहीं बोलने देता था; अंत में सभी ने जिद की, इसलिए शराब पीने वाला डॉक्टर या वैद्य मिले तो ले आओ, तो मान गया! इसके बाद हम एक डॉक्टर या वैद्य को खोजने गए जो शराब पीता है। पूरा गांव डॉक्टरों और वैद्योंसे भरा है, लेकिन कही भी ऐसा कोई डॉक्टर नहीं!
खुदाबक्श: तो आखिर में क्या हुआ?
शास्त्री : अपना सोन्याबापू अभी भी शराब पीने वाले डॉक्टर को खोजने के लिए इधर-उधर भटक रहा है. गाँव में मुझे एक शराबी वैद्य नहीं मिला; अंत में एक आदमी मिला।
खुदाबक्श: वह एक वैद्य है ना?
शास्त्री: वैद्य नहीं! वह पहले वैद्य के घर दवा चूर्ण करनेवाला नौकर था! आगे उसने अब अपनी फैक्ट्री लगा ली है! मैने सोचा, चलो, यह नहीं से बेहतर है! वह अभी आने के लिए तैयार हुआ है- (सोन्याबापू और डॉक्टर आओ।) क्या आपको लगता है कि सोन्याबापू को एक डॉक्टर मिला है जो शराब पीता है?
सोन्याबापू: नहीं। कोई डॉक्टर नहीं हैं, केवल शराबी हैं। लेकिन डॉक्टरी थोड़ा जानता है। मैंने उनसे आग्रह करके लाया हूँ आपके कुछ वैद्य हमे पसंद नहीं हैं!
शास्त्री: कुछ भी हो! आयुर्वेद में हमारा दृढ़ विश्वास विशेष है। वैद्य नहीं जानता – और डॉक्टर जानता है - डॉक्टर, मुझे क्षमा करें। यह मेरी सरल बात है - आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
सोन्याबापू: इतना ही नहीं; लेकिन इन वैद्योंके विज्ञापनों से बड़ी नाराजगी है! जल्द ही जिसे मिले वो ऐए बात करता है । शास्त्रोक्त चिकित्सा, शास्त्रोक्त दवा, अचूक गुणकारी दवा, रामबाण दवा, निश्चित गुण, अगर तीन दिनमे गुण नही आया तो दुगुना फी वापस,; सोबत दवा शुल्क जानकारी, डाक शुल्क अलग है-
डॉक्टर: इसके अलावा, , ट्रेन की अंत में गाड़ी की तरह खतरे की चेतावनी!
सोन्याबापू : इसलिए एक सच्चे वैद्य और झूटा वैद्य की पहचान करना उतना ही मुश्किल हो गया है कि रोगकी निदान करना! हमें वैद्य के लिए कोई अनादर नहीं है; हमारे पास एक क्यों नहीं है, लेकिन एक असली वैद्य की जरूरत है- वैद्य प्रवेश करता है।)
वैद्य: मान लीजिए आपकी मनोकामना पूरी हुई। क्या आप एक असली वैद्य चाहते हैं? तो देखो, वह हमारे सामने खड़ा है। हमारी दवाएं बहुत शास्त्रोक्त हैं और रामबाण हैं; निश्चित गुण, तीन दिनों में गुण, कोई गुण नहीं होने की स्थिति में दोहरा धनवापसी; सोबत दवा शुल्क जानकारी, डाक अलग है - विशेष नोट –
सोन्याबापू: यह आपके खतरे की चेतावनी! डॉक्टर, इसे लो, अब सुनो! (डॉक्टर जोर से हंसते हैं।)
वैद्य: क्या हुआ, क्या हुआ?
डॉक्टर: (हंसते हुए) तुम मूर्ख हो!
वैद्य: जो व्यक्ति अपने अल्प परिचय के कारण किसी और को मूर्ख कहता है, वह स्वयं मूर्ख है!
डॉक्टर: लेकिन जो छोटी-सी जान पहचान में अपनी सारी मूर्खता साफ-साफ दिखा देता है, वह उससे भी बड़ा मूर्ख है!
शास्त्री: अब रहने दो! क्या तालीराम को उठाने में कोई दिक्कत नही है ना? तालीराम, हे तालीराम, उठो बाबा! ये वैद्य और डॉक्टर आये हैं। (तालीराम उठकर बैठ जाता है।)
डॉक्टर: क्या बात है सोन्याबापू, क्या ये वैद्य यहाँ दवा देने आए हैं?
वैद्य: अरे, मुझे यह सवाल पूछने का अधिकार है। (शास्त्रीबुवास) यह क्या है, शास्त्रीबुवा, जब मैं वहां था तो और लाने की क्या जरूरत थी?
मन्याबापू : देखो, वैद्यराज, तुम्हारे दोनों पंथ बहुत अलग हैं। तो हम दोनों जानबूझ कर लाए! हाँ, 'अधिक से अधिक फल'!
वैद्य: ये क्या है! दुल्हन की बेटी के एक पति के बजाय दो पति होते हैं, या पिता के एक के बजाय दो पिता होते हैं।
मन्याबापू : वैद्यराज, ऐसे गुस्सेमे मत आना। अब जब तुम आ गए हो तो तालीराम को शांति से दवा दो।
तालीराम: शास्त्रीबुवा, मैं एक डॉक्टर से भी मरने वाला नहीं था, इसलिए तो तुमने दोनों को लाए क्या?
डॉक्टर : तुम्हारी ये धारणा राजश्री की दवा के कारणही है! उनकी दवा में वास्तव में कोई जान नहीं है!
तालीराम : चिकित्सा में जान नहीं होगी तो चलेगा! केवल रोगी की जान लेने की शक्ति होनी चाहिए!
वैद्य: नहीं। हमारी दवाएं ऐसी नहीं हैं! इस आंख की दवा देखिए। जो नहीं देख सकता था, उसे मैंने यह दे दिया। अब वह अँधेरे में भी देख सकता है।
डॉक्टर: हमारे पास ऐसी उससे भी जादा असरदार दवा है जो इनका मुंह बंद कर देगी! अगर हम अपनी आँख की दवा किसी अंधे को दे दें तो वह अँधेरे में देख सकता है, लेकिन आँख मूंदकर पर भी वह देख सकता है!
तालीराम: (स्वगत) मुझे कुल सोलह-सत्रह रोग हैं। मैंने सोचा था कि उनमें से एक मेरी जान ले लेगा; लेकिन ऐसा लगता है कि इन दोनों में से कोई एक बाजी जीत जाएगा!
वैद्य: तो क्या, मैं आपकी दवा ले सकता हूँ?
डॉक्टर: ओह, अपनी बुद्धि को अपने पास रहने दो! मैं उन्हें दवा देने जा रहा हूँ!
तालीराम : आह वैद्यराज, डॉक्टर साहब, अगर तुम एक दूसरे से बहस करके एक दूसरे को मारने लगोगे तो मेरी जान कौन लेगा? बहस मत करो, मैं तुम्हारी मौत का आधा श्रेय तुम दोनों को बांटने के लिए तैयार हूं। हाँ, वैद्यराज निकालो आपकी दवाए।
वैद्य: इस मात्रा देखो। इससे वैद्यों के लिए आपके सारे विकल्प खत्म हो जाएंगे।
जनुभाऊ: अबब! कितनी ये मात्रा! नौसिखिए कवि की पदोमे भी इतनी मात्रा नहीं होंगी!
वैद्य: इस चूर्ण को, इस सार को, इस भस्म को देखो! यह सुवर्णभस्म, यह मोक्तिकाभस्म यह लोहाभस्म-
तालीराम : जान लेने के विज्ञान में भी कैसी दुविधा! बीमारी को ठीक करने के लिए पहले इतने सारे पदार्थोंकी सत्व निकालने की तैयारी! शरीर का भस्म करने के लिए इतने भस्मकी तैयारी!
जनुभाऊ : कुल वैद्य के हाथ में मिले मरीज को बचाना मुश्किल! हाँ जो लोहेकाभी भस्म करता है उसको रोगीके शरीर का क्या ।
वैद्य: हां, इन दवाओं के बारे में इस तरह का मजाक बनाना पाप है। ये दवाए प्राणोसेभी अधिक मूल्यवान है ।
जनुभाऊ : इसिलिए रोगीका प्राण लेनेके बाद दवाके पैसे भी लेते हो!
वैद्य: फलतू शब्दच्छल मत करो। ये कोई ऐसी वैसी दवा नहीं है! बिना हिचकिचाए आंखें बंद करके ले सकते है ये दवाएं!
तालीराम : और दवा लो और फिर से अपनी आँखें बंद करो!
जनुभाऊ: लेकिन यह हमेशा के लिए है! दरअसल, राजा के लिए तैयार किए गए व्यंजन रसोइए को पहले से ही खाने होते हैं, जैसे चिकित्सक को मरीज के साथ दवा लेनी होती है! तब वैद्यों ने इस घातक पदार्थ को तैयार करते हुए थोड़ा सोचा होता!
तालीराम : सच में, क्या ये दवाओंकी भीड है! डॉक्टर, वैद्यपर दवा क्यों नहीं?
वैद्य: ऐसा मत कहो। वैद्य के बारे में ऐसा अविश्वास न दिखाएं। वैद्य मरीज का सच्चा सबसे अच्छा दोस्त होता है।
तालीराम: यह सही है! अन्यथा रोगी के इतने करीब कौन होगा?
डॉक्टर: ओह सोन्याबापू, क्या खेल है बच्चों का! क्या वैद्यी दवासे कभी बीमारियों का इलाज करना चाहते हैं? जब एक पिता दवा लेता है, तो उसके बेटे की पीढ़ी को अच्छे परिणाम मिलते हैं!
वैद्य: अस्तु। हालांकि बहुत कुछ है। वैद्य की दवा बच्चे को जिंदा रखती है; एक डॉक्टर के मामले में, तो, दवा की अधिक मात्रा से पिता की मृत्यु हो जाएगी और पुत्र दवा बिलके आघात से मर जाएगा!
डॉक्टर : ऐसा नहीं है कि शरारत से हर जगह प्रतिष्ठा बढ़ती है, क्यों? यह तो आपके लोग ही मानते है कि देसी दवा की गुणवत्ता धीरे-धीरे आती है। वही विदेशी दवा देखो। दवा लेने से पहले और बाद में मरीज की हालत में तीन दिन में जमीन-आसमान की दूरी!
वैद्य: यह सच है। यानी जो मरीज जमीन पर होता वह तीन दिन में स्वर्ग चला जाता!
डॉक्टर: यह चिकित्सा शिक्षा का अपमान है!
वैद्य: और आपने आयुर्वेद को कब आजमाया? मैं आयुर्वेद का स्तंभ हूँ!
डॉक्टर: क्या आप आयुर्वेद के स्तंभ हैं? ओह, आप एक दवाउत्पाद फैक्ट्री में दवा चूर्ण करने वाले एक मजदूर थे, आयुर्वेद के नाम का आपसे इतनाही संबंध है!क्या आप वैद्य है?
वैद्य: यह सच है कि आपने अपना हाथ दिखाया और फस गये।! तब तुम भी एक डॉक्टर कहॉ हो! मेरे हाथ में देसी दवाएं हुआ करती थीं। और तुम डॉक्टर नहीं हो; लेकिन आप सिर्फ एक कंपाउंडर भी नहीं हैं। आपका प्राथमिक काम डॉक्टर के कार्यालय से थके हुए बिलों की वसूली करना है! इतने हल्के स्पर्श से आप चिकित्सा शिक्षा को जोड़कर आयुर्वेद का अपमान कर रहे हैं!
मन्याबापू: हे गृहस्थ, आपको अपनी बातचीत में आयुर्वेद, वैद्य, चिकित्सा विद्या, डॉक्टर जैसे बड़े नामों की आवश्यकता क्यों है? आप एक दूसरे का अनादर करते हैं इससे बड़े नाम आहत नहीं होते । आपके नाम का उस पवित्र नामों से क्या लेना-देना है? देशों में कुछ भूकंप नहीं आते क्योंकि हवा नक्शा उड़ा देती है! अब जब आप आ गए हैं, तो तालीराम के तबियत को एक साथ देखें, और खुश कदमों के साथ अपने घर लौट जाओ। हाँ तालिराम आगे आओ। वैद्यराज, डॉक्टर, अब बहस मत करो! डॉक्टर, आप इसकी दाहिनी ओर की जाँच करें और वैद्यबुवा, आप इसके बाईं ओर को संभालें। (दोनों तालीराम को चेक करने लगते हैं।)
वैद्य: क्या करें, दाहिने हाथ की नब्ज को देखना ही शास्त्रोक्त है। यहाँ हमा रा ज्ञान नही चलता! नाड़ी के बायीं ओर भी एक छोटा सा दाहिना हाथ होता तो कितना अच्छा होता!
डॉक्टर : नाड़ी देखी। चलो अब जुबान निकालो!
वैद्य: हाँ शास्त्रीबुवा; उन्हें प्रतिबंध करें! किसकी जुबान हमारी क्यों नही? कोई जुबान नहीं देख सकता। मरीज के दो मुंह होते तो बात कुछ और होती! जुबान अभी लड़त मे है! आपको हात देखकरही निदान करना होगा।
तालीराम: (स्वगत) हम क्या करें? अच्छा होता तो एक हाथ ऐसे दिखाये कि एक मुँह के दो मुँह होते!
डॉक्टर: नाड़ी बहुत धीमी है!
वैद्य: नाड़ी बहुत तेज चलती है!
डॉक्टर: अंग ठंडे हैं।
वैद्य: बुखार शरीर को नहीं छूने देता!
डॉक्टर: इसे नींद नहीं आ रही!
वैद्य: सुस्ती जाती नहीं है!
डॉक्टर: रक्तसंचय कम हो गया है!
वैद्य: रक्तसंचय ज्यादा हो गया है!
डॉक्टर : पोषण से खून की आपूर्ति होनी चाहिए!
वैद्य : पट्टी बांधकर रक्तस्राव करना चाहिए !
डॉक्टर : नहीं तो क्षय हो जाएगा !
वैद्य: नहीं तो मेदवृद्धी हो जाएगी!
तालीराम : क्या बात है, यह परीक्षा मजाक है? दोनों के शब्दों में जमीन और आसमान के बीच की दूरी! शास्त्रीबुवा, मैं अकेलेसे मरने वाला नहीं था, इसलिए मुझे लगता है कि तुमने इन दोनों को लाया?
डॉक्टर: आप ऐसा कैसे कहते हैं? यह शरीर में बाएँ-दाएँ होताही है! अर्धशिशी के समय आधा सिरदर्द नहीं होता क्या? एक आंख आती है और एक आंख जाती है!
वैद्य: इसके अलावा, इस-हमारी व्यवस्था के विरोध को ध्यान में रखा जाना चाहिए। कहीं उनकी-हमारी बातों में, एक-दूसरे से मिलने में नहीं तो! यही अंतर है!
तालीराम: हाँ, तो ठीक है। अब मेरे शरीर की वैसी ही दुर्दशा करो जैसा आप समझे। एक बाजू हानीसे पतली हुई है और दूसरी मोटी हुई है। ऐसा कहेंगे तो मै अपना मोटी पहलवान जैसी बाजूसे पतली बाजूपर हसकर दिखाता हूँ। इतना ही नहीं अगर मैं एक तरफ मरा हुआ हूं तो मैं जी रहे बाजूसे मृत बाजू को भी कंधा देने के लिए तैयार हूं! चलो परीक्षा जारी रखें!
डॉक्टर: बीमारी कोशिश से जूर हो जाएगी है।
वैद्य: रोग पूरीतरहसे असाध्य है!
डॉक्टर : ठीक आहार लिया तो मरीज ठीक हो जाएगा।
वैद्य : धन्वंतरि ने कोशिश करनेपर भी रोगी जी नहीं सकता!
डॉक्टर : जान जाए तो भी मरीज नहीं मरेगा! ।
वैद्य: तीन दिन में मरीज मर जाएगा!
डॉक्टर: अरे, यह आपकी शर्त नहीं चाहिए। क्या देना है वो दवा दो।
डॉक्टर: (स्वगत) अब वह इस चोर को अच्छी तरह से धोखा देता हूँ । (खुलकर) ठीक है, मेरे साथ एक आदमी दो दवा भेज दूंगा। इसे दिन में तीन बार शराब के साथ दिया जाना चाहिए! उसे हरबार शराब देनी चाहिए!
वैद्य: यह हमारी दवा है। तीन दिन में एक बार लें, शराब न पियें! शराब की बूंद को मत छुओ!
तालीराम : शराब को छूना नहीं चाहते? क्या ऐसा है? शास्त्रीबुवा, दोनोंको उठाओ! शराब का स्पर्श नहीं चाहिए? हम्म, उठो! डॉक्टर, आपके पास कौन सी दवा है भेजो और बाकी अस्पताल उस वैद्यको पिलाओ और वैद्यबुवा, तुम अपने पूरे आयुर्वेद को इस डॉक्टर के गले में घूस दो! चलो निकलो (वे दोनों जाते हैं।) देखो क्या किस्मत का खेल है! मै दवा के लिए शराब पीने लगा तो शराबके लिए दवा देनेकी नौबत आयी। खुदाबक्श, कोई बचा हो तो निकालो! बस्स अभी ये बच्चों का खेल! (वे शराब लाते हैं, सब पीने लगते हैं।)
सुधाकर: रुको, सब कुछ खत्म मत करो। मुझे अब जितनी शराब है उतनी ही चाहिए। (वह एक कुर्सी, मेज, दो या तीन सीसा आदि लेकर आगे आता है और गिलास भरता है।)
शास्त्री: क्यों, खुदाबख्श? हमारी बात सच हुई या नहीं? सुधाकर, क्या तुम्हारे स्वभाव की परीक्षा ठीक थी? आपकी प्रतिज्ञा टूट गयी।
सुधाकर: (ग्लास भरते हुए) मेरे मूर्खों, मेरे स्वभाव से तुम्हारी परीक्षा नहीं हुई है। लेकिन मैं अपने दुर्भाग्य परीक्षा नही कर सका! दोस्तो ना बोलने के लिए मुझे एक बार माफ़ कर देना, लेकिन इस बार मुझे तंग मत करना! घायल शेर की दहाड़ सुनकर भी कायरों को भागना पड़ता है! मुझपे हंसने की इच्छा है क्या आप मेरी कुचेष्टा करना चाहते है? करो, आरामसे करो। लेकिन एक तरफ जाके!
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