Friday, February 18, 2022

एकच प्याला -मराठी नाटक हिंदी अनुवाद 4.2.1

 

 प्रवेश II

(स्थान: सुधाकर का घर। पात्र: सिंधु कागज मोड़ रही है, सुधाकर पीछे खड़ा है। गीता आ रही है।)

सिंधु: इस गीताबाई बैठो थोडी देर ये चार चार पेपर मोडना बाकी हैं। अगर इसमें कुछ समय लगे तो चलेगा?

गीता : इसे धीम होने दो! क्या मै पेपर मोडनेमे हात बटाऊ?

सिंधु: नहीं। गीताबाई, मेरी कसम! बिल्कुल नहीं!

गीता: बाईसाहेब, अलविदा क्यों नहीं कहते? हमेशा तुम्हारा ऐसाही! मैंने कुछ करनेकी बात कही तो आप नही मानते!

सिंधु : गीताबाई, मैंने इन के पैरों पर हाथ रखकर शपथ ली है कि मैं किसी और की लकडी भी घर में नहीं लाऊंगी! दूसरों की मेहनत हमारे लिए पूरी तरह से मना है! गीता: बाईसाहेब, मैं तुमसे क्या कहूँ? तुम कितनी मेहनत करत हो और हम चट्टान की तरह पास बैठकर आंखें मूंद कर बैठे! मेरी आत्मा को कैसा लगेगा?

सिंधु: गीताबाई, तुम हमारे लिए इतना कर रही हो? इस गांव मे इधर उधर जाके  और प्रिंटिंग प्रेस से इस कागज को लाते हो इसके लिए हम आपके आभारी हैं? कौन किसके लिए मेहनत कर रहा है?

(राग- पहाड़ी- गज्जल; ताल- धूमाली। चल- दिलके तू हान।)

मैंने माँ को जन्म दिया।
आप ढके हुए हैं।
निजाकन्याक गनोनी।
कुछ कमी नहीं। धुरु .॥

उपकार जे जहले। हिमाद्रितुंगेस।
सैकड़ों जन्म। में क्या करूंगा? 1

कृपया, इसे याद रखो।
अपुलिया हमेशा ऐसा ही होता है।
परोपकारी तान्या।
अपनी स्थिति को नम करें। 2

 गीताबाई, आप रोज़ ऐसा काम लाओगे तो हम आपके बहुत ऋणी होंगे?

गीता: लेकिन भगवान इससे संतुष्ट नहीं हैं! आज सारा गाँव काम लाने के लिए चल पड़; लेकिन मुझे किसी भी कारखाने में काम नहीं मिल! सुना है युद्ध के कारण कागज की कमी है, इसलिए कोई काम नहीं है!

सिंधु: अब कैसे करें?

गीता: मैं बहुत दिनों से इसी चिंता में हूँ! कहा भी यह काम नहीं मिलता है! जैसे भगवान अंत में बैठे हैं!

सिंधु: गीताबाई, हमार नसीब झूठ हैं; परमेश्वर वहाँ क्या करेगा? खैर, प्रिंटिंग प्रेस को छोड़ो! कुछ और क्यों नहीं मिलता?

गीता: और कौन-सा काम ढूंढें?

सिंधु: कुछ भी हो, कुछ ऐसा निकालो जो हमारे घर में किया जा सके! कौन-सा काम ढूंढें?

 हाँ कहॉ धान पिसाईका काम मिलेगा क्या? इसे घर पर करना अच्छा रहेगा

गीता: अगबाई, धान पिसाई? बाईसाहब, आपने ये क्या कहा?

सिंधु: क्या हुऑ?  इसमें ऐसा देखनेकी क्या हैं?

सुधाकर: (स्वगत) सिंधु, सिंधु, किस भगवान ने तुम्हें बोलना सिखाया?

गीता: तुम जैसे लोग पीसने का काम करे?  नवकोटनारायण है आपके पिता, लक्ष्मी के साथ सारिपत खेलते हुए पैदा हुए थे; अब यह करना चाहते हैं?

सिंधु: हाँ! लक्ष्मी खेल आधा छोडकर चली गयी और हाथमे  कावद्यः आ गई! म्हारी करतूत, उसे कौन क्या करेगा? अगर आप दोप्रहर से बचना चाहते हैं! वे इसे क्यों नहीं देख पाते? परन्तु परमेश्वर के भवन से चुराया गया; इस तरह उसने सोचा! नही तो कोन इसे चाहता था?

(राग- जोगी-मांड, ताल-दीपचंडी, चल-पियाके मिलनेकी।)

मुझे क्या दोष देना है? प्रकटनी जरी।
 मैं अपने लेखन में रोता रहता हूं। धुरु .॥

रिज़र्व मनुज को भुगतना पड़ा।
कभी नहीं टालता नमस्ते 1

गीता: अरे, पीसना इतना आसान क्य है? कुलों की पत्नियाँ धडखडी होती हैं, लेकिन वे भी थक जाती है। और आप तो आधा पेट भूखी रहकर कैसे करोगी?

सिंधु: हॉ, मैं इसे किसी तरह निभा लूंगी! आधा पेट क्या पूरी तरह भूखी रहकरभी हमें उस दिन की जरूरत पूरी करनी होगी? आप मेरी बात सुनें, आप बिना हिचकिचाए कोई आटा मिले तो ले आना! अरे, किसी और के लिए तो  ऐसा करना नही है? देखो कहाँ

गीता: देखती हूँ ! दूसरा कोई चारा नही है, तो क्या करें? खैर, बाईसाहेब, आज दो दिन से मै कहनेका सोच रही थी लेकीन भूल गयी! देखो, मैं तुम्हें जहॉ बतात हूँ, क्या तुम वहाँ जाओगे?

सिंधु: कहाँ जाना है? मुझे बताओ

गीता: अमृतेश्वरी!

सिंधु: वहाँ क्यों जा?

गीता : आज चार दिन का लक्षभोजन! अगर हम वहाँ चार दिन के लिए जाएँ तो हमें मीठामीठा, की कम से कम दो घासें मिलेंगी! तुम्हे भूखा देखकर मेरा पेट टूट रहा है ! (सिंधु अपना चेहरा घुमाती है और दर से अपनी आंखों से आंसू पोंछती है।)

सुधाकर: (स्वगत) ओह, मैंने क्या सुना? कितनी आसानी से ग़रीब परिवार की इस उदार लेकिन बेचारी भोली लड़की ने सिंधुके दिलको आसानी से ठेस पहुंचाई! क्या धनवानों की पुत्री, ज्ञानी की पत्नी, क्या इस दयालु लड़की को उसकी भूख पर तरस खाकर सदा के लिए उपदेश करना पडे? सुधाकर, तुम्हारी दुनिया क्या है! आपकी आदत और मर्दानगी पर धिक्कार है!

गीता : अगबाई, क्या तुम्हारी आँखों में पानी आ गया? क्या आपको मेरा भाषण इतना कठिन लगा? मैं जानत हूँ बाईसाहेब, मैं तुम्हारी पागल बेटी हूँ; यदि मै कोई गलती कर, तो उसके बारे में मत सोचें। मैंने अपने भोलेपनसे ये बात कही! लेकिन इसने आपकी आत्मा को ठेच पहुचाई

सिंधु: (स्वगत) इस बेचारी को संतुष्ट करना चाहिए। बेचारी तुरंत बावरी बन गए। (खुलकर) गीताबाई, नहीं, मुझे बुरा लगा!

गीता : मैं उस तरह मूर्ख नहीं बनना चाहती! आपकी तो आँखें भर आ?

सिंधु: मैं भी मन से जाना चाहती थी. लेकिन यह देखिए, इतने फटे कपडोंके साथ चार लोगों में से कैसे जाए? इसलिए मुझे अफसोस है!

गीता: इतनाही है? मैं तो घबरा गई! कहां बात करने गयी और क्या हुआ। मैं अपना पतला लाऊं क्या?

सिंधु: गीताबाई, तुम पागल तो नहीं हो? तुम्हारर पतला मुझे छोटा हो जाएगा? इसे रहने दो - इससे कुछ गलत नहीं है। आप पीसाई कहाँ देखते हैं?

सुधाकर: (स्वगत) अच्छा किया, सिंधु, अच्छा किया! फटे कपड़ों के बहाने से तुमने मेरी मदहोश प्रतिष्ठा को ढक दिया!

सिंधु: गीताबाई, क्या तुम फिर चुप हो?

गीता: आपके देवीस्वरूप स्वभाव को हम क्या करे, बाईसाहेब? सतजनमा के संतों को भी आपके चरणों में तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। और हमारे परिवार की तरह, वे आपके बारे में शराब की तरह गाली-गलौज कर रहे हैं।

सिंधु: हाँ, गीताबाई, क्या हम महिलाओं को ऐसा कहना चाहिए? पति भगवान के समान है-

गीता: क्या भगवान है! आह, यह शराबी भगवान आज नाले में बहेंगे, कल और कहाँ लुढ़के!

सिंधु: गीताबाई, चुप रहो! ऐसे मत बोलो। देव ब्राह्मणों द्वारा दिया गया पति कैसा भी हो वो पति है-

(राग- पहाड़ी- गज्जल; ताल- कवाली। चल- खड़ा कर।)

देवाची ललना को ऐसा पति।
ऐसी और कोई भावना नहीं है।
स्पर्शमणि वनितामन सचे।
करित जे कंचन लोहाछे।
खपत अंग दोष।
गणितीय गुण मधुर आर्योष।
इसके साथ नरक करने के लिए।
स्वर्गसुखा मणि समाजवादी अबला।
ऐसा है पत्थर जन्नयनी।
गणी त्याज्य ईशचि तद्रमणी॥
वसुनी इस देवता के करीब है।
ईशपद लभति सपति अंती॥ 1 

गीता: लगता है भगवान ने अब शर्म की जड़ छोड़ दी है! बाईसाहेब, मुझे अपने कपड़े धोने के लिए कहो - मैं एक बार छोड़के और सात बार धोऊंग - लेकिन ऐसी बातोम से मेरे मुंह को बंद मत करो! ऐसे पति क्यों जलाने लायक हैं? उनकी बेअकल कैसे हो जाते  है? इनको कोई कदर नही होता है। इनको क्यू देवता कहे इनकी तो जुतेसे पूजा करना चाहिए ! अगर मुझे भगवान मिल जाता तो आपके सामने उसे खड़ा कर दूंगी , उसका अच्छा कान निचोड़ कर उससे पूछत, "इस माऊली को देखो, एक बार अपनी आंखें खोलो और फिर बताओ, तुमने ऐसे बच्चों से भरे घर में डालनेके लिए शराब क्यों बनाई?"

बाईसाहेब, तुम मुझे डाटती हो; लेकिन मैं सीधीसाधी हूँ! आपकी तरह सीतासावित्री, दादा साहबने, कभी आपक ईज्जत की? अच्छा सीखेहुए! लेकिन उसकी सारी बुद्धि एक बोतल से पैदा होती है, वह कचरेमे खाते है, और तीसरी, किसी मस्नावती में - इसे जाने दो, मेरे मुंह को कोई अटकाव नहीं रहता! बाईसाहेब, तुम्हें देखकरही  मेरी जीभ फट जाती है! बता द, क्या है इन्होने कभी आपको समय पर खाना दिया, समयपर कपडा लाया....? अष्टौप्रहार बड़ी बुद्धि प्याली में डूबी बैठी !

यह भगवान कौन है? ओह, , शुद्ध पत्थर! और उन पर सेंवई पीकर रोते बैठना! रानी का राज्य गया, है ना? फिर रानी के इस राज्य में पत्नियोकी ये हालत क्यों हैं? अगर मुझे किसीने राज्य दिया तो मै सब पत्निओंको बताऊंगी कि पति शराब पीके आयेगा तो उसे गोशालेमे रस्सीसे बॉंध रखो! कहते हैं पति भगवान की तरह! इसीसे उनका नजारा बढ गया है! जो शराब पीता है उसे पति कैसे कहे? उनको  इंसानोंमे भी  जगह नहीं होन चाहिए!

सिंधु: गीताबाई, गंदी जुबान से अपना धर्म क्यों छोड़ना चाहती हो! देखो, बच्चा भूखा है; थोड़ा सा दूध- (पीछे मुड़कर देखत है। स्वगत) अगबाई! यहाँ ये खडे हैं? गीताबाई का भाषण इन्होने सुनया लगता है? (खुलकर) गीताबाई जाओ। क्या तुम दूध लाते हो? (उसे निशान करती है।)

गीता: (देखकर) अगबाई! दादा साहब यहां थे? मेरी जीभ कुछ भी बोल रही थी!

सिंधु: (धीरेसे) चलो अंदर चलते हैं, दूधके लिए बर्तन देत हूँ और पिसाईका मत भूलो। चल। (वे जाते हैं। सुधाकर आगे आत हैं।)


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