प्रवेश 1 (स्थान: सुधाकर का घर। पात्र: सिंधु और सुधाकर।)
सिंधु: भाई साहब के पास ननद गयी है और मुझे घर में अकेलापन महसूस होता है,; तो मै कहती हू, क्या आपको अभी बाहर जाना चाहिए?
सुधाकर: ओह, जब तक कि यह बहुत जरूरी मामला न हो, मैं इतनी जल्दी क्यों जाऊँगा। अब मुझे जाना चाहिए! मेरे खानेके लिए रातको अब और इंतज़ार मत करना।
सिन्धु : जिस दिन से आई हूँ, उसी दिन से देखती आ रही हूँ, रात में हमेशा खानेके लिए बाहर रहते हो । एक, दो या तीन बारही, बस खानेको घर पर रहना हुआ! आपसे एक पूछू? बहुत दिनों तक मायकेमे रहनेपर आप नाराज तो नही? अगर ऐसा है, मै आपकी क्षमा चाहती हू।
(राग-मंद-जिला; ताल-दादरा। चल-कहा मनाले।)
स्थिर करना। करुणामय। विंटिसी या मन।
नाराज मत हो। दिल में करुणा लाओ धुरु .॥
जाहला, मैंने कुछ गलत किया।
प्यार के लिए, माफ कर दो, लेकिन करो।
विंटिसि या मन। 1
सुधाकर : ओह, अगर इस चार्टर के काम के लिए चारों के यहा जाके कोशिश करनी है, तो चलना पडता है! किसी के घर पर खानेके लिए जिद होती है। काम छोडके खानेकेलिए घरपर आना क्या ठीक रहेगा। मुझे अब रात के दो बजे तक बैठना पडता है! मै आपसे नाराज हू यह कैसे आपने मान लिया?
सिंधु : (रोते हुए) फिर बात करनेमे भी एक चिडचिडाहट रहतू है , बच्चे की भी तारीफ करने की जरूरत नहीं लगती!
सुधाकर : तुमसे बात करना बड़ी मुश्कील का काम है,! मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि मैं तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना पहले करता था! मैं अपने दिल के नीचे से बच्चे की प्रशंसा करता हूं - लेकिन मैं क्या कह सकता हूं? क्या आप नहीं देख सकते अच्छा, अब मत रो! कल की समय सीमा के बाद मुझे चार्टर प्राप्त होगी – फिर ये काम खत्म हो जाएगा। अब मुझे जाना है। वाद-विवाद जैसी कोई बात नहीं है - यह खुद को चोट पहुँचाता है और दूसरों को चोट पहुँचाता है!
(स्वगत) रामलाल ने इसे तार करके जल्दीसे बुलाया है, इसलिए इसे चिंता लगी है! यह रामलाल अच्छी तरह इंग्लैंड गया था। लेकिन जंग शुरु होनेसे वह वापस आया। तो यह पीडा पीछे लगी है। यह आँखमिचौनी कितने दिन तक करना पडेगा? (जाता है।)
सिंधु: हे भगवान, अब मेरी सारी चिंताएं तुम्हारी हैं!
(राग- तिलक्कमोद, ताल- एकताल। चाल-अब तो लाज।)
प्रणतनाथ! राखी कांत.
अपने दुख को शांत करो। धुरु .॥
अमंगल पति के लिए, वह हमेशा।
परिणीभवी मंगलता॥ 1
(रामलाल और शरद आते हैं।)
सिंधु: अरे देखा क्या भाई? बस चल पड़े। रोज कहना- मुझे काम पर जाना है और खाने का इंतजार नहीं करना है!
रामलाल: मैं नहीं जानता कि यह कैसा चमत्कार है! चार्टर अभी निरस्त हुई है। क्या उसे समस्या नहीं है? शायद मानी स्वभावके कारण वह किसिके पास खुलकर नही बोलता होगा।
शरद: ना यह कोई समस्या नहीं है। हालांकि जब पता चला कि दादा का चार्टर बीत चुका है, उस समय से वाहिनी के पिता ने खुले हातसे पैसे भेजना शुरू कर दिया है, हालांकि दादा ऐसा लिखते हैं जैसे वह नहीं चाहते।
सिंधु: नहीं, भाई; पैसे की समस्या क्या है? कुछ तो गलत सलत लगता है - मेरा मन कह रहा है ! भाई अब कैसे करे ? (रोने लगती है।)
रामलाल: ताई, सिंधुताई, क्या यह पागलपन है? आपके पास अच्छा और बुद्धिमान धैर्य है - क्या आप ऐसा करना चाहती हैं? धैर्य रखो
(राग- भीमपलासी; ताल- त्रिवत। चाल- बिरजामे धूम मचाई।)
सच्चरे, धैर्यसदा सुखधाम। आपदा महा सकल पूर्वी काम। धुरु .॥
व्यक्तिगत विभाजन का विघटन। दूसरे भगवान के नाम की तरह। 1
एक दो दिनों में मैं पूरी जांच करूंगा और सच्चाई का पता लगाऊंगा। जाओ, यह शरद बच्चे को बाहर से लायी है, उसे ले जाओ और उसे सोने दो; अपनी आखें पोछो आप तो हसती खेलती रहना चाहिए। नही तो मै इसमे आपको सहायता नही दूंगा।, कुछ नही हुआ है और रोने की क्या बात है? जाओ उसे ले जाओ।
सिंधु: भाई, भाई तू कुछ भी कहो फिरभी
(रागा- जिला मंड, ताल- कवाली। चाल- पिया मनसे।) दयाचय घे निवारुनिया, भगवान मजवारी नाराज हैं। धुरु .॥ जीवनसी मां आधार गुरु जो। तो अजी कैसे गायब हो गए? 1
रामलाल : शरद, शरद, जाओ बेटा। ताई को कुछ समझाओ! उसे रुलाओ मत! (शरद जाती है। रामलाल जाने लगते हैं।) (गीता आती है।)
गीता: भाई साहब-
रामलाल: कौन? गीता, नहीं? आपने मुझे फोन किया था?
गीता: हाँ! कोई शरम न रखते हुए मैने आपको पुकारा! शरदिनीबाई की तरह मुझे अपनी बेटी ही समझो! भाई साहब, मैंने अभी-अभी बाईसाहेब को बोलते हुए सुना और मुझे बहुत दुख हुवा। देखिए दादा साहब क्या करते हैं, कहां जाते हैं, किसके साथ जाते हैं, मुझे सब पता है।
रामलाल : हाँ! आइए बताओ कि वे क्या क्या करते हैं।
गीता: कैसे बताऊ! अब वे शराब पीने लगे हैं - (अगल-बगल) शराब पीने के लिए!
रामलाल : क्या शराब ? (साँस छोड़ते हुए) रघुवीर! श्रीहरि! - गीताबाई, क्या आपको यकीन है?
गीता: आह, कितना पक्का? मैने खुद देखा है! हमारे घरके लोगोनेही दादा साहबको-
रामलाल: रुको, यहाँ बात मत करो! सिंधु ने एक भी बात सुनी तो अपनी जिंदगी बर्बाद कर देगी! तुम थोड़ा बाहर आओ, और थोडा आगे। मुझे बताएं कि क्या आप सब कुछ जानती हैं - चलो। (स्वगत) उफ़, दुष्ट बदकिस्मत तूने ये क्या किया है?
(राग- बिलावल। तल-त्रिवत। चाल-सुमरण कर।)
वसुधातालरमणीय सुधाकर।
वैसंधनातिमिरी बुद्विसी कैसी है? धुरु .॥
श्रुजुनी जया परमेष सुखावे।
नशुनी हया, तुझी मोड नृसंसा! 1
(जाता है। पर्दा गिरता है।)
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