प्रवेश पांचवां
(स्थान: सुधाकर का घर। पात्र: सिंधु फटे कपडोमे धान पीसनेका काम कर रही है। झूलेमे बच्चा है।)
सिंधु: चंद्र चवथिचा। राम के बगीचे में चफा नवतीचा। (एक दो बार कहती है) (बच्चा झूलेमे में रोने लगता है।) (वह उठती है और उसे झूले से निकालकर बाहर ले जाती है।) क्या चौथीका चंद्रमा आज जल्दी उठ गया। मुझे लगता है कि इस चंद्रमा ने चतुर्थी का व्रत रखना शुरू कर दिया है(? क्या भूख लगी है? बेबी, एक मिनट रुको। अब गीताबाई आएगी, उसे दूध लाने को कहूंगी, मेरे बच्चे के लिए! अब अपनी ऑखे क्यों भिगो रहे हो? कुछ समय दूध पिला था क्या आप उतना ही दूध पर कुछ समय नहीं बिताना चाहते? इतने जिद्दी मत बनो? जब चाहे दूध मिलने के दिन, राजसा, अब तुम्हारे नहीं रहे! हमारी दूध की बर्तने खाली है!
(राग- कलंगड़ा; ताल- दीपचंडी। चाल-छुपनापे रंग।)
मुझे मत देखो, माफ करना, राजस बेबी। धुरु .॥
यह भगवान अपुली न करुणा तोवरी समजुनी। वरते अनु काला॥ 1
गरीबी में एक छोटी सी आत्मा को भी बड़े आदमी की समझ चाहिए, बच्चे! हॉ, अब आप कैसे मुस्कुराने लगे! ऐसी बुद्धि अब सीखनी चाहिए! मेरा बच्चा गुणवान है! ऐसे सद्गुणों के कारण किसीकी नजर लग जाएगी! आंखों से अली बालगंगा! मेरी आँखों से निकले आँसुओं से तुम्हें क्यों बुरा लगा? बेबी, मैं रो रही हूँ, तो तुम क्यों रो रहे हो? अगर मैं रोना नहीं तो क्या करे? आज मुझे लगा, भगवान की दया थी! उन्होने एक अच्छी शपथ के साथ शराब छोड दी थी; लेकिन हमारी किस्मत आड़े आ गई! अभी-अभी मेरे भाई ने मुझसे कहा कि क्लब जाके फिर से उन्होने शराब पिना शुरू किया है! अब बेबी, आपके पास दुनिया के लिए क्या सहारा है! बेबी, जल्दी उठो, और अपने कोमल हाथों से मेरे आँसू पोंछो! क्या आप आँसुओं की इस सतत धारा के साथ अपने दूध की आपूर्ति नहीं करना चाहते? क्या आपने सुनते समय आंखें बंद करके ही ध्यान किया था? न हंसने का समय, न रोने का! हाय, मैं गा रही हूँ! (वह अपनी गोद में सो जाता है और फिर पीसना शुरू कर देती है। जल्द ही गीता प्रवेश करती है।)
चंद्र चौथीचा। राम के बगीचे में चाफा नया है! (बार-बार कहने लगती है। गाने को देखते हुए)
अरे! गीताबाई, तुम ऐसे क्यों खड़ी हो? बैठ जाओ तालीरामकी तबियत अब कैसी है? कभी उसमे कोई सुधार आया है?
गीता: कोई सुधार नही! लेकिन बाईसाहेब, तुम्हारा क्या ये बुरा हाल है? धन्य हो तुम्हारी।पीसनेकी चक्कीके आवाजकोभी अपने गीतसे मीठा करते हो!
सिंधु: कहते हैं ना,जैसी इच्छा वैसा फल! मेरे पिता के घर में, जब मैं एक बच्ची थी, हमारी नौकरानी हर सुबह अपने प्यारे गले में यह गीत गाती थी; मैं उसे हर समय अपने बिस्तर पर लेटे हुए सुनती थी। बचपन की समझ- एक बार सहज ही मन में आ गया तो मुझे भी इसीतरह एक गीत गाते पीस लेना चाहिए; देव बापदा बस वही सुन रहे थे; उस समय वह मुझ बच्चीको प्रदान नहीं कर सका; अब बदनसीब के चक्कर में आकर मुझे फिर बचपन मिला और मेरी पीसने की इच्छा पूरी हुई! उसे याद करके मैं गा रही थी! लेकिन गीताबाई,शामको ये पीसा हुआ धान देना है उसके कितने पैसे मिलेंगे।
गीता: सहा!
सिंधु: तो अब क्यों नहीं मिलते?
गीता: काम से पहले इसे कैसे प्राप्त करें?
सिंधु : हाथ-पाव पकडनेपर भी क्यों नहीं मिलते?
गीता: उस घर के लोग बड़े कंजूष हैं! कोई भी कामके पहले भुगतान नहीं करना चाहता! लेकिन बाईसाहेब, अब आपको पैसे क्यों चाहिए थे?
सिंधु: (स्वगत) अब आप इस लड़की से क्या कहना चाहते हैं? मैं कैसे बताऊं कि घर में चिमनी के चारे का भी सहारा नहीं है? देवा लक्ष्मीनारायणा, कुबेर, आपके कोषाध्यक्ष हैं! लेकिन हमे हर घर जाकर मॉंगनेपर मजबूर कर देते हो । इसमे क्या पुरुषार्थ है - लेकिन आपको क्यू दोष दू? नसीबने माथेपर यही लिखा है तो क्या करे? पीछले जनममे किसी ब्राह्मणको खानेकी थाली से उठाया होगा, तो आज हमें भोजन के लिए छटी दिशा में देखना होगा; कोई बाहरके मेहमानको कुछ न देके लौटाया होगा, इसलिए लक्ष्मी घर से दूर गयी! अगर गाइगुजी को हरी-भरी चरागाहों से निकाल दिया होता, तो आज बच्चे को दूध नहीं मिलता! हमारा संचितही झूटा है, तो आप हमारे पास क्या शिकायत करेंगे?
(राग- सावन; ताल- रूपक। चाल- पति हूं पीयूं।)
मैं आपकी निंदा कैसे कर सकता हूं, भगवान? अपने दोष मत देखो। किसी को गुस्सा आता है। मेरे पास एक परमाणु भी नहीं है। दोषी स्वभाव! मैं धुरु .॥ जमा हुआ धोखा। मेरा भजनी उसके। अपनी अमर दया को मजबूर मत करो। 1
गीताः तुमने मुझे नहीं बताया कि अब तुम्हे क्यो पैसे चाहिए?
सिंधु: क्या बताऊ, गीताबाई? आज अन्नपूर्णामाई हमारे घर में रूठी है! भगवान के लिए भी घर में चावल नहीं है! इसिलिए कह रही थी- मुट्ठी भर चावल उबालने से किसी तरह दोपहर बीत जाएगी! मेरे पास बच्चे के दूध के लिए केवल दो पैसे हैं!
गीताः आह, इतनाही। (स्वगत) अगबाई, लेकिन अगर मै मेरेपासके दूंगी तो नही लेगी! (प्रकट) बाईसाहेब, अगर आप जिद करके उनसे मांगें, तो कितने मिलेंगे? (पैसे गिनते हुए) एक, दो, तीन और (खुले) चार पैसे मिलेंगे! नहीं मिलेंगा ऐसा बिलकुल नहीं होगा! जाऊ क्या? जाके सीधे यहॉ आती हूँ।
सिंधु: कैसे भी आप ला सकते हो! लेकिन ये दो पैसे ले लो और बच्चेके लिए पहले दूध लाओ। बडी समय से उसे भूख लगी है! तबतक, मैं यह आटा पीसती हूँ! बादमे इसे ले जाओ!
गीता : बाईसाहेब, दसबार मेरे मनमे आया अभी बोल देती हूँ। तुम्हारा घर इतना उजाड़ हो गया है और तुम इनका का स्वास्थ्य पूछ रहे हो! जबसे उस दिन की कहानी मैने सुनी है, उस पल से मेरा मन कैसे दुखी हो गया! जब घटोत्कच को कर्णकी की शक्तिने प्रहार किया, तो उसने सोचा कि अगर हम पीछे हट गए, तो पांडवों के लोग मर जाएंगे! तो उसने आगे छलांग लगाई और कौरवसेना पर अपना इतना बड़ा शरीर फेंक दिया! देखो! हर एक ने मरते वक्त अपने आदमियों का हित देखा और मेरे पतिने आखिर आखिरमे दादा साहब को इस शराब की आदत डाली, और आपके सोना जैसे संसारको मिट्टीमे मिला दिया! होना, जाना किसीके हातमे नही है, लेकिन आज या कल की तुलना में मेरे पतीका(निधन) चार साल पहले होता तो बेहतर था!
सिंधु: हाँ, गीताबाई, क्या तुझे ऐसा बोलना चाहिए? घर से बर्तन लेकर बाहर निकलो और जल्दी जाओ! पागलपन मत करो! ये देखो बच्चा गोद में सो रहा है, इसलिए पीसना मुश्किल था; बस जाते जाते उसे उस बिस्तर पर लिटा दो! (गीता बच्चे को लेती है।)
'चंद्र चवथिचा-' (बच्चा रोने लगता है।) बच्चा उठ गया हैं? उसे यहाँ लाओ, गीताबाई! (गीता बच्चे को वापस लाती है और चली जाती है।) जल्दी से आ जाओ? (बच्चे के लिए) बेबी, तुम्हारी नींद क्यों उड गई? क्या तुम भूखे हो? जब भूख लगी है, तो नींद कैसे आएगी? बेबी, एक मिनट रुको, अब गीताबाई आएगी! क्या आपने इस आटा को इतनी भूखी आशा से देखना शुरू किया? बेबी, अश्वत्थामाको माँने आटा, पानी मिलाकर उसकी दूध की प्यास बुझाई! लेकिन बेबी, हमारा भाग्य बहुत कम है; इस आटे की एक चुटकी पर भी हमारा कोई हक नहीं है! यह दूलरे लोगोंका है! राजसा, चेहरे पर आटे की वह धारा दिखे तो क्या आप तारामती के रोहिदास को मुस्कुराना दोगे?
(राग- भैरवी; ताल- पंजाबी। चाल- बाबुल मोरा।)
गुणगंभीरा। हार मत मानो, धीरे-धीरे प्यार करो। धुरु .॥
सत्त्वपरीक्षा महा। याद रखना भगवान योजनाकार है।
क्यों वीरा जब अवसाद उचित है? मैं 1
रोओ मत! देखो, वह देखो गीताबाई दूध लेकर आई! (देखते हुए) मुझे लगता है कि वो(सुधाकर) आ रहे है! लेकिन कैसे ओ भगवान, तुम क्या किस्मत लाए हो? (सुधाकर आता है - उसके पैर लडखडाते हैं।)
सुधाकर: सिंधु, इधर आओ, मुझे और पीना है! ज्यादा नहीं, सिर्फ एक कप! पैसे लाओ! सिंधु, पैसा लाओ!
सिंधु: अब मैं किस तरह का पैसा लाऊं? मेरे पास कुछ नहीं है!
सुधाकर: तुम झूठ बोल रही हो! ले आओ! आप लाती हैं क्या? नही तो जीसे मार डालूंगा।
सिंधु: आपके पाओंकी सौगंध, अब मेरे पास कुछ भी नहीं है। दो ही पैसे थे वो बच्चे को दूध लाने के लिए दिए! आपको चाहिए तो बच्चे की गर्दन पर हाथ रख कर बताती हूँ!
सुधाकर: उसका गला दबाओ! पैसा क्यों दिया?
सिंधु: बेबी के लिए क्यों नहीं? यह क्या है?
सुधाकर: चले जाओ! मेरे लिए नहीं है और उसके लिए पैसा है? क्या वह बच्चा पति से बढ़कर है? सिंधु, तुम पतिव्रता नहीं हो! कमीने! यह बच्चा उस रामलाल का है! मेरा नहीं है
सिंधु: शिव शिव! क्या बताये?
सुधाकर : शिव नहीं शिव हैं, रामलाल हैं! अब मार डालता हूँ! (एक बड़ी छड़ी लेकर बच्चेके के पास जाता है।)
सिंधु: (घबराकर) अब मै इसे क्या करू? अगर मै चिल्लाऊ और चारों को इकट्ठा किया, तो इनसे कुछ बुरा होगा! भगवान, अब मै क्या करू? अब अपने बच्चे के लिए अपने फटे अंगों के प्यार से कैसे ढकूं! (सुधाकर छड़ी मारता है लेकिन सिंधु बीच में आती है; सरमे छड़ी लगनेसे चोट लगकर वह बेहोश हो जाती है।)
सिंधु: भगवान, मेरे बच्चे का ख्याल रखना!
सुधाकर: तुम मरो! अब बच्चे को मरने दो! (छड़ी मारता है। बच्चा मर जाता है।) (पद्माकर आता हैं।)
पद्माकर: कमीने, यह क्या है?
सुधाकर: कुछ नहीं; अधिक पीना चाहते हैं - एक कप!
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