प्रवेश IV
(स्थान- सुधाकर का घर। पात्र- आसनमरण सिंधु; पास मे सुधाकर, पद्माकर, रामलाल और फौजदार)
पद्माकर : दादा साहब, इस मृत बच्चे को देखो; वह इस बदमाश द्वारा मारा गया था! इसे देखो, मेरी बहन! इसी दुष्ट शराबी ने इस दुबली पतली शरीर को जी जानेतक चोट पहुचाई है! इस नराधम को पकड़ो।
फौजदार : भाऊसाहेब, ऐसे गुस्सा करोगे तो क्या होगा? रुको, हम ओरत से पूछकर पंचनामा करेंगे।
पद्माकर: ताई, ताई, सिंधुताई-
रामलाल: भाई, एक मिनट रुको; इतना मत उलझो! उसको थोड़ी ग्लानी आयी है!
पद्माकर : यह ग्लानी - यह ताई - यह सब कुछ - इस शराबी राक्षस का घोर कर्म है! दादासाहेब, जो चाहो करो, लेकिन ताई की पंचप्राणोंको लूटने वाले इस काले मुहवाले शराबी को कुछ जबर सजा मिलनी चाहिए!
रामलाल : भाई, होना था वह हो गया। उनसे खफा हो कर, क्या वो बात फिर आएगी?
पद्माकर: भाई, मुझे दिलासा देने की कोशिश मत करो! यह चांडाल, मेरी सोने जैसी ताई, खाना न देके घस दी गई, लाठी और पत्थरों से कुचल दी गई, और मकड़ी-मोंग के मुंह से भी जो शब्द नहीं निकलते, उस शब्दोंसे यह शराबीने इसके मनको गहरी चोट लगाई! दादा साहब मै आपके पॉव पडता हूँ, चाहे कुछ भी हो जाए, उसको खुला मत छोडना! जानबूझकर अपराध किया इसलिए जेल मे भेजो या नशे में पागल होनेसे किसी पागलखानेमे डालो। इसे चतुर अपराधी कहो, या मूर्ख जानवर, लेकिन इसे पिंजरे में डाल दो! इसके मोह में लिप्त - मेरी बहन, जो देवी जैसी है - हाँ, इस पशु की, जिसे पति चुना गया है, यहाँ पाँच आत्माओं के फूलों की पूजा करने के लिए लगी हुई है। मूर्ति माने जाने वाले इस पत्थर को यदि नर्क में फेंक कर नजर दूर किया जाता तो बहनको घर ले जाया जा सकता है और इसकी दवा की व्यवस्था की जा सकती है!
फौजदार : भाऊसाहेब, शांत हो जाओ। आप फिर कहने लगे-
पद्माकर : दादा साहब, मुझे क्षमा करो। अगर मै पत्थर की मूर्ति होता तो भी एक हाथ लंबी जीभ बाहर निकाल कर बातें करता! तो अब अच्छा उसी जैसे रक्त-मांसका - उसका भाई - मैं क्या कहूं, देखो, अभी उसके शरीर पर कोई रक्त-मांस नहीं बचा है, - इस राक्षस ने इसे भी निगल लिया – इस पिशाचने शराब के घूटके साथ उसके खून की घूट लेकर और जीते जी शरीर को खा लिया। चार मिलोंके मालिक की बेटीको इस विद्वान शराबी ने उसे अपना पेट भरने के लिए चक्की के पाट पर पीसने के लिए मजबूर किया। हमारे घर में, कुत्तों के पिल्लों को जिस तरह का दूध मिलता वैसा – नही जो जमीनपर गिरता है उतना भी दूध इस बच्चेको नही मिलता है। हमारे घर में, नौकरानी ने खानासे बचा हुआ भाग छोड़ा होगा, उतनाभी खाना उसे कभी नहीं मिला! इसे देखनेपर कोई दयामाया नही रहती! पत्थर होगा तो आदमी होता और अगर आदमी है तो पत्थर होगा। गले में फंदा बांधते समय अगर ताई के गले का मंगलसूत्र टूट भी जाए तो चलेगा! ताई, सिंधुताई, उठो, बेबी! (उसे थोड़ा ऊपर रखता है।)
सिंधु: दादाजी, आप कब आए? भाई आप भी आये? दादाजी, उठो, चूल्हे पर कुछ चावल हैं; इनके शरीर पर दो ताँबा पानी डालकर उन्हे चार घास खिलाएँ! उनके पेट में लंबे समय से कुछ नहीं है!
पद्माकर : इसके मुख में चार घास डालने के स्थान पर मैं इसके पिण्डब्रमाण्ड की एक ही घास बनाकर काल के पेट ठूसने के लिए मै आया हूँ! ताई, देखो फौजदार साहब तुम्हारा जवाब लेने आए हैं। उन सभी को बताएं कि इस जानलेवा शराबी ने क्या किया! दादासाहेब, उससे पूछो कि वह क्या पूछना चाहते है-
फौजदार: औरत, मुझे बताओ उसने क्या किया!
सिंधु: उसने कुछ नहीं किया - तुमसे यह किसने कहा?
फौजदार : तो बच्चे को क्या हुआ? आपके माथे पर यह चोट कैसे लगी?
सिंधु: मैं दो दिन से भूखी थी। रहने से चक्कर आ रहा था। जब मैं बालक को लेकर बाटिका से उतर रही थी, तो मुझे ग्लानी आ गयी और मै गिर पडी; गिरने की वजह से मेरे माथे पर चोट आ गई! बच्चा मेरे शरीर के नीचे दब गया था! इनका इससे कोई लेना-देना नहीं है!
पद्माकर: ताई, मैंने झूठ कहा ? तो इस छड़ी पर खून कैसे?
सिंधु: मैं यहां खूनकी हाथ से छड़ी लेकर आई ती। इनका इससे कोई लेना-देना नहीं है!
फौजदार: औरत, क्या यह सब सच है?
सिंधु: सच - बहुत सच! मुझ पर विश्वास करो
पद्माकर: नहीं, हाँ; दादासाहेब, यह सरासर झूठ है! ताई, तुम मुझे, बाबा को, अपने पति को शपथ दिलाओ। सच बताओ।
सिंधु: दादा, ऐसा अंत क्यों देखते हो? मुझपर विशेवास किजीए!
पद्माकर : दादा साहब, यह झूठ है! अब क्या करें?
फौजदार : भाऊसाहेब, अब कुछ नहीं हो सकता! आप कितने भी नाराज़ क्यों न हों, उनकी अच्छाई के सामने आपका और हमारा क्या होगा? न्याय का अस्त्र कितना ही तीक्ष्ण क्यों न हो, ऐसे पवित्र पुण्य के गुण की ढाल ने बाधा डालने पर वह क्या करेगा?
पद्माकर : दादा साहब ! क्या आप इस बदमाश को उसके झूठ बोलने के कारण आज़ाद होने देते हैं?
फौजदार : भाऊसाहेब, गंगा नदी में तैरने वाले का क्या होगा!
रामलाल: अच्छा किया, सिंधुताई, अच्छा किया! भाऊसाहेब, ऐसी गुणी सती के अस्तित्व में देवब्राह्मण के सत्य से अधिक ईश्वर के आशीर्वाद की शक्ति है! भाई, जाने दो! यह हो चुका है! सिंधुताई, आप धन्य हैं! आप जैसे आर्य अभी भी हैं, इसलिए इस पवित्र भूमि को आर्यावर्त कहा जाता है! भारत साध्वीसती का घर है! अगर सरकार सती प्रथा पर कानून बनाकर हमारी साध्वियों के शरीर को एक साथ जलाने पर रोक लगा दे तो ये देवियाँ पति के नाम पर अन्दर ही अंदर जलकर आत्म-बलिदान कर रही हैं! भाऊसाहेब, सिंधुताई के लिए, सुधाकर पर क्रोध छोड़ दो!
सिंधु: दादाजी, इधर आओ, मेरे पास बैठो! दादाजी, क्या आप अपने आदमी से ऐसे ही नाराज़ होंगे? मेरी जीने की घड़ी टिक रही है! बाबा और तुम दोनों के सिवाए अब इनसे कोई बात करने वाला है? मैं एक ऐसा रत्न पीछे छोड़ जा रही हूँ, क्या यह आपके धैर्य पर नहीं है? क्या आप अब उनकी आत्मा को ढंकना नहीं चाहते हैं? अब आपको अपनी बहन के सौभाग्य का ध्यान रखना चाहिए। बचपन में आप मेरे कुंकवाले को तरोताजा करने के लिए मेरी टोकरी में हिरण के बाज के पंख लाते थे, याद है? तो वह प्यार अब कहाँ गया? मैं अपना भाग्यशाली कुमकुम आपके अधिकार में छोड़ रही हूँ!
पद्माकर : दुष्ट सैताना, सुनो, मेरी प्यारी बहन का एक एक शब्द सुनो! लेकिन तुम्हारी आंखें कब खुलेगी? ताई, ताई, यह क्या बोल रही है आप?
रामलाल: भाई, फौजदार साहब को जानेमे देर हो रही है?
फौजदार : चलो भाऊसाहेब- लेकिन कभी तो इनकी शिकायत निकाल दो। (रामलाल और पद्माकर फौजदारको विदा करने जाते हैं।)
सुधाकर: (स्वगत) खुल गयी, भाऊसाहेब, मेरी आंखें खुल गईं! लेकिन जब तक मेरी आंखें खुली हैं, मैं इस देवता के जीवंत प्रकाश में स्वर्ग का मार्ग देखना चाहता हूं।बादमे अगर चारोतरफ अंधेरा छाया और मेरी ऑखे सदाके लिए मिट गयी तो चलेगा। (चारों ओर देखते हुए दवा खोलते हुए) हाँ, यह जहरीली दवा है! आत्मा के पास गए सात जन्मों का शत्रु कहां है? (शराब और जहर एक गिलास में डालता है।)
सिंधु: सुना है? मेरे पास आईए।-
सुधाकर: क्या हम आपके करीब आएं? (उसके पास बैठकर) क्या बात है?
सिंधु: मेरा सिर अपनी गोद में रखो! मुझे अपना हाथ दे।
सुधाकर: (ऐसा करते हुए) सिंधु, सिंधु, सिंधु देवता के रूप में! अफ़सोस की बात है! सिंधु, तुम इस शराबी पति के चरणों में डूब गई! मै ने आपका अपमान किया! आपको कभी पर्याप्त भोजन नहीं मिला! मैंने तुम्हें पेट के लिए पीसने के लिए मजबूर किया! आप कैसी हैं! तुम्हारे पेट की बच्चेको तुम्हारी आँखों के सामने मार दिया! देवी! सिंधु, सिंधु, उदार हृदय सिंधु, मुझे एक शाप के शब्द से जला दो! आप सुधाकर का देहाती पुण्य खर्च कर और झूठ बोलकर उसे बचाने की कोशिश क्यों कर रहे हो? स्वर्ग की दुनिया को अपनी अच्छाई से सजाने और मनाने की आपकी क्षमता; लाखों-लाखों का संचय लाखो लाख सिंधु, देवी, मुझे क्षमा करें! इस शाश्वत आपराधिक पाप को क्षमा करें!
सिंधु: तुम ऐसी आत्मा का इलाज क्यों करना चाहते हो? मुझे झुंझलाहट क्यों है? हल्दी से भरा हाथ गोद में लेकर मरना ही था, इससे ज्यादा और क्या मांगूं? मेरे लिए यह शुभ अवसर है! आ अपने मन को परेशान नहीं करना चाहिए। मैरी अपनी गलेकी कसम! आपकी तबियत पहले से ही ऐसी है! गर्मी में आपको सरदर्द हुआ तो अदरक देनेवाला कोई नहीं। दूसरा, मेरा आखिरी हाथ जोड़कर कहना है। अब आपकी जान की रक्षा करने वाला कोई नहीं है। सभी लोग अपने अपने होते हैं। मेरे माथे पर बस तेरी ही सेवा लिखी थी, - अब तुम अकेले हो - अब मेरे अपने खून की कसम- तुम शराब फिर कभी नहीं लेना चाहिए! मैं इतना सुनना नहीं चाहती! एक बूंद भी लेने की जरूरत नहीं है-
सुधाकर : नहीं, सिन्धु, सारा जन्म तुम्हारी पवित्र आज्ञा को तोड़ने में खर्च हो गया! यह पापी सुधाकर आपके अंतिम आदेश का पालन करने के लिए पर्याप्त भाग्यशाली नहीं है! यह आखिरी सिंगल कप मैं अभी भी पीना चाहता हूं। नहीं, बदकिस्मत आत्मा, अब मेरी तरफ मत देखो! इन जमी हुई आँखों में अनाथ की और क्या आशा है? सिंधु, सिंधु, क्या - रामलाल, दौडो-
सिंधु: नाथ, अपनी आत्मा का ख्याल रखना- सुधाकर! मेरे सुधाकर को, भगवान- (सिंधु मर जाती है। रामलाल आता है। सुधाकर गिलास लेता है और खड़ा होता है। रामलाल सुधाकर के हाथ से गिलास लेने जाता है, वह तुरंत जहर पीता है।)
सुधाकर : चांडाला, ऐसा काम कभी भी मत करना!
रामलाल : सुधा, यह प्याला क्या है?
सुधाकर : शराब ! एक कप!
रामलाल : इतना होनेपर शराब ज्यादा! वही शराब जिसने इतना नुकसान किया?
सुधाकर: हाँ, रामलाल, वही शराब! वही शराब जिसने मेरे घर को इतना खराब कर दिया! चारों महाद्वीपों पर तबाही का राज चलाने वाली शराब! वह शराब जिससे कुबेर भीख माँगते हैं! भीम की तरह वज्रदे भी शरीर को बहत्तर रोगों का अस्पताल बनाते हैं। शिमगा के अपशब्दों से विद्वान मुनि के मुख को सुशोभित करने वाला नशा ! शराब पति के हाथ से महापतिव्रता को बाजार में लाती है ! अंतरंग संबंधों के धागे तोड़ती है शराब! शराब बेटे से बाप को मारती है, बच्चे को बाप से! शराब एक शुद्ध मुसलमान को, जो सुअर का नाम तक नहीं लेता, सुअर जैसा दिखता है! गायत्री मंत्र से पवित्र ब्राह्मणों की जुबान पर गायत्री के मांस को झुनझुनी बनाने वाली शराब! एक जानवर की तरह, एक वास्तविक जन्मस्थान में एक बेटा पैदा होता है - काश! मेरे ज़ख्मों पर नमक मलने की बात करो -! लेकिन शराब को कुरूप नहीं मानने वाले सुधाकर की जुबान का क्या होगा घिनौने शब्द से! और समाज में विभिन्न स्थानों पर सीखे गए संभावित गले से बहने वाली शराब के नाले में गंदगी के एक शब्द को ले जाने में कितना समय लगेगा!
रामलाल अपने कान तोड़ो और साफ सुनो - वह शराब जो बेटे को मातृगमन्य की तरह वास्तविक जन्म स्थान में पेशाब करवाती है! - मुझे वह शराब पीनी चाहिए! अब बुरा मत बनाओ! नाराज़ न हों- मैंने एक बार तुमसे कहा था, आज मैं आपको एक आखिरी बात बताऊंगा, शराब शुरू होने से पहले से छुटकारा पाने का समय क्या है! पहला सिंगल कप लेने से पहले भविष्य के शराबी का हाथ पकड़ने से ही फायदा होगा! जिसने एक बार पहला सिंगल प्याला लिया उसे आखिरी बार लेना होगा! शराब के नशे में मरता था शराबी, ये है नारा! और मेरे जैसा कोई पछताए तो भी यह एक प्याला कुछ नहीं! लेकिन जिस तरह पानी में दवा को मारने के लिए बहुत सारा पानी लगता है, ठीक उसी तरह जैसे इस आखिरी प्याले को लेने के लिए, आपको शराब की जलती हुई आग को बुझाने के लिए रसकपारा जैसा बहुत सारा जहर डालना होगा!
रामलाल : क्या ? इसमें रसकापुर? क्या आपने बेहद खतरनाक रसकापुर पिया है? भयानक जहर का प्याला?
सुधाकर: अगर मैं जहर नहीं पीना चाहता तो क्या होगा? इसे देखिए- इस देवता के मेरे जाने के बाद दुनिया में क्या बचा है?
रामलाल: क्या, ताई गयी? (सिंधु के पास जाकर बैठ जाता है।)
सुधाकर: हाँ, रामलाल, वह चली गई! मेरी सिंधु चली गई! मेरी अच्छाई की सिंधु खत्म हो गई है! मेरी दया की सिन्धु, करुणा की सिन्धु, काल का सागर - इस पापी सुधाकर द्वारा निर्मित मदिरा का सागर। एक गिलास शराब में डूबी इस सुधाकर की दुनिया!
(राग- भैरवी; ताल- दादरा। चल-पिया सोने दे।)
भगवान न करे। जागते रहो धुरु .॥
सिंधु खुश है। योग्यता का सारा आटा गरम हो गया है. विशाल जरी हाय। 1
वामनवतारी भगवान को त्रिभुवन को मापने के लिए एक विशाल त्रिविक्रम के रूप में तीन कदम उठाने पड़े, लेकिन यह सुधाकर देवी त्रिभुवन के केवल दो कदम तक थे! उन्हीं पैरों पर सिर रखूं तो मर जाऊं। यदि मैं इस देवता के पैर पकड़कर उनके साथ चलूँ तो ही मैं उनके पुण्य से अपने पापों को जलाकर स्वर्ग के द्वारों में प्रवेश कर सकूँगा! गया! दिव्यतापस्विनी मंगलनिधान पुण्यमूर्ति सिंधु चली गईं! रामलाल, तुम्हारी बहन चली गई और मेरी माँ चली गई!
रामलाल, रामलाल, इस सब दुर्भाग्य का कारण शराब का एकमात्र प्याला है जो मैंने पहले लिया था! वह अपना चेहरा, जो उस दिन किए गए पापों से भ्रष्ट हो गया है, इस देवी के रक्त से, अमृत की इस मूर्ति से साफ करता हूँ । (उसके खून को चूमता है।) इसका मतलब है कि मेरा पवित्र शरीर स्वर्ग के योग्य होगा! रामलाल, उसके माध्यम से मत जाओ, यह एक कप लो! यह एक प्याला मेज पर रख कर जगत को दिखा, और जो आया है, जो सीखा है, जो अज्ञानी है, जो राजा है, जो पद है, जो एक ब्राह्मण, जो महाराजा है, बूढ़ा और बच्चा है, आपकी आत्मा का मित्र है! उसके पास से दूर रहना! जो मिले उससे कहो- मैं सिंधु के पवित्र खून से अपना चेहरा धो रहा हूं- मैं जोर से नहीं चिल्ला रहा हूं- आप सभी को खुली आवाज से कहते हैं, जो कुछ भी आपको पाप लगता है वह करो- लेकिन शराब मत पीओ! (वह सिन्धु के चरणों में सिर रखकर मरता है।)
रामलाल : काश, यह कैसी विपदा! अचानक तीन आत्माओं का निधन हुआ।! बच्चा चला गया, सिंधु चला गया, सुधाकर चला गया! घर डूब गया और गोत्र डूब गया! सुधाकर का अब इस दुनिया में क्या बचा है? बस यही है शराब का प्याला कि ये तीनों जीव सब कुछ लेकर डूब गए !!
ब्रह्मर्पन ब्रह्महवीरब्रह्मग्ना ब्राह्मण हुतम। ब्रह्मिव तैन गंतव्य ब्रह्मकर्मसमाधिना। - श्रीगीतोपनिषवि श्रीभगवान् अंक पांच समाप्त होता है।