अथैकत: शतपर्यन्तं संख्यानां संज्ञास्तद्द्योतकाङ्कप्रदर्शनपुरस्सरं लिख्यते ।
एकम्
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१
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रूपं
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द्वे
|
२
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अश्र्विनौ
|
त्रीणि
|
३
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पुराणि
|
चत्वारि
|
४
|
अब्धय:
|
पञ्च
|
५
|
इषव:
|
षट्
|
६
|
ऋतव:
|
सप्त
|
७
|
अश्र्वा:
|
अष्टौ
|
८
|
वसव:
|
नव
|
९
|
अङ्का:
|
दश
|
१०
|
दिश;
|
एकादश
|
११
|
रुद्रा:
|
द्वादश
|
१२
|
आदित्या:
|
त्रयोदश
|
१३
|
विश्वे
|
चतुर्दश
|
१४
|
मनव:
|
पञ्चदश
|
१५
|
तिथय:
|
षोडश
|
१६
|
भूपा:
|
सप्तदश
|
१७
|
अश्वाब्जा:
|
अष्टादश
|
१८
|
गजेन्दव:
|
एकोनविंशति
|
१९
|
गोऽब्जा:
|
विंशति
|
२०
|
नखा:
|
एकविंशति
|
२१
|
स्वर्गा:
|
द्वाविंशति
|
२२
|
आकृतय:
|
त्रयोविंशति
|
२३
|
अग्निकरा:
|
चतुर्विंशति
|
२४
|
सिद्धा;
|
पञ्चविंशति
|
२५
|
तत्वानि
|
षटविंशति
|
२६
|
तर्कपक्षा:
|
सप्तविंशति
|
२७
|
भानि
|
अष्टाविंशति
|
२८
|
नागदस्रा:
|
एकोनत्रिशत्
|
२९
|
अङ्क्यमा:
|
त्रिशत्
|
३०
|
अभ्रानला:
|
एकत्रिशत्
|
३१
|
कुवह्नय:
|
द्वात्रिंशत्
|
३२
|
रदना:
|
त्रायस्त्रिंशत्
|
३३
|
अमरा:
|
चतुस्त्रिंशत्
|
३४
|
अब्ध्यग्नय:
|
पञ्चत्रिंशत्
|
३५
|
बाणपावका:
|
षट्त्रिंशत्
|
३६
|
रसदहना:
|
सप्तत्रिंशत्
|
३७
|
अश्र्वशिखिन
|
अष्टात्रिंशत्
|
३८
|
गजज्वलना:
|
एकोनचत्वारिंशत्
|
३९
|
गोहुतभुज:
|
चत्वारिंशत्
|
४०
|
पूर्णाब्धय:
|
एकचत्वारिंशत्
|
४१
|
कुबेदा:
|
द्वाचत्वारिंशत्
|
४२
|
करययुगा:
|
त्रिचत्वारिंशत्
|
४३
|
अग्न्यर्णव:
|
चतुश्र्चत्वारिंशत्
|
४४
|
कृतवेदा:
|
पञ्चचत्वारिंशत्
|
४५
|
अक्षसागरा:
|
षटचत्वारिंशत्
|
४६
|
रसवार्धय;
|
सप्तचत्वारिंशत्
|
४७
|
हयजलधय:
|
अष्टाचत्वारिंशत्
|
४८
|
गजवारिधय:
|
एकोनपञ्चाशत्
|
४९
|
ताना:
|
पञ्चाशत्
|
५०
|
वियद्वाणा:
|
एकपञ्चाशत्
|
५१
|
अब्जेपव:
|
द्वापञ्चाशत्
|
५२
|
यमशरा:
|
त्रिपञ्चाशत्
|
५३
|
कृशानुविशिखा:
|
चतुष्पञ्चाशत्
|
५४
|
श्रुतिसायका:
|
पञ्चपञ्चाशत्
|
५५
|
अक्षमार्गणा:
|
षटपञ्चाशत्
|
५६
|
रसभूतानि
|
सप्तपञ्चाशत्
|
५७
|
अश्वेन्द्रियाणि
|
अष्टपञ्चाशत्
|
५८
|
गजशिलीमुखा:
|
एकोनषष्टि:
|
५९
|
नन्दवायव:
|
षष्टि:
|
६०
|
खरसा:
|
एकषष्टि:
|
६१
|
कुतर्का:
|
द्वाषष्टि:
|
६२
|
पक्षर्तव:
|
त्रिषष्टि:
|
६३
|
रामाङ्गानि
|
चतु:षष्टि:
|
६४
|
अब्धिरसा:
|
पञ्चषष्टि:
|
६५
|
बाणतर्का:
|
षट्षष्टि:
|
६६
|
रसर्तव:
|
सप्तषष्टि:
|
६७
|
हयाङ्गानि
|
अष्टषष्टि:
|
६८
|
नागरसा:
|
एकोनसप्तति:
|
६९
|
अङ्कर्तव:
|
सप्तति:
|
७०
|
वियदश्वा:
|
एकसप्तति:
|
७१
|
भूपर्वता:
|
द्वासप्तति:
|
७२
|
यमाश्र्वा:
|
त्रिसप्तति:
|
७३
|
वह्नितिरङ्गा:
|
चतु:सप्तति:
|
७४
|
सागरपर्वता:
|
पञ्चसप्तति:
|
७५
|
भूतर्षय:
|
षट्सप्तति:
|
७६
|
अङ्गहया:
|
सप्तसप्तति:
|
७७
|
द्वीपमुनय:
|
अष्टसप्तति:
|
७८
|
गजाश्र्वा:
|
एकोनाशति:
|
७९
|
निधिबूधरा:
|
अशीति:
|
८०
|
खनागा:
|
एकाशीति:
|
८१
|
भूकुञ्जरा:
|
द्वयशीति:
|
८२
|
करभुजगा:
|
त्रयशीति:
|
८३
|
क्रमसर्पा:
|
चतुरशीति:
|
८४
|
कृतेभा:
|
पञ्चाशीति:
|
८५
|
अक्षपन्नगा:
|
षड्शीति:
|
८६
|
रसवारणा:
|
सप्ताशीति:
|
८७
|
द्वीपगजा:
|
अष्टाशीति:
|
८८
|
वसुनागा:
|
एकोननवति:
|
८९
|
गोसर्पा:
|
नवति:
|
९०
|
अभ्राङ्का:
|
एकनवति:
|
९१
|
भूनिधय::
|
द्वानवति:
|
९२
|
पक्षग्रहा:
|
त्रिनवति:
|
९३
|
वह्निरन्ध्राणि
|
चतुर्णवति:
|
९४
|
वेदाङ्का:
|
पन्चनवति:
|
९५
|
सायकनन्दा:
|
षण्णवति:
|
९६
|
रसनिधय:
|
सप्तनवति:
|
९७
|
पर्वतच्छिद्राणि
|
अष्टनवति:
|
९८
|
अहिनन्दा:
|
नवनवति:
|
९९
|
गोऽङ्का:
|
शतम्
|
१००
|
पूर्णाभ्रभुव:
|
संदर्भ - गणितकौमुदी - साहित्याचार्य पं. गणपतीदेव शास्त्री Kashi Sanskrit Series No. 81
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