अथाष्टचत्वारिंशत्तमं क्षेत्रम्।
तत्र यदा त्रिभुजस्यैकभुजवर्ग: शेषभुजद्वयवर्गसमान: स्यात् तदा शेषभुजद्वयमध्यकोण: समकोण: स्यात्।
यथा अबजत्रिभुजे बजवर्ग: अबअजयो: वर्गयोगसमानस्तदा अ: समकोणो जात:।
कुत:।
अदलम्ब: अजरेखायां अबतुल्य: कार्य:। जदरेखा लग्ना कार्या। तदा दजवर्गजबवर्गौ समौ स्त:। दजजबौ समौ स्त:। तदा अबजत्रिभुज अदजत्रिभुजयो: कोणौ भुजौ च समौ स्याताम्। तदा जअबकोणो जअदकोणेन सम: स्यात्। तदा जअब: समकोणो भविष्यति। इदमेवास्माकमिष्टम्।।
श्रीमद्राजाधिराजप्रभुवरजयसिंहस्य तुष्ट्यै द्विजेन्द्र:
श्रीमत्सम्राड् जगन्नाथ इति समभिधाख्यातनाम्ना प्रणीते।
ग्रन्थेऽस्मिन्नाम्नि रेखागणित इति सुकोनावबोधप्रदातर्यध्यायोऽमध्येतृमोहापह इति विरतिँ चादिम: संगतोऽभूत्।।
इति रेखागणिते प्रथमोऽध्याय: ।।१।।
तत्र यदा त्रिभुजस्यैकभुजवर्ग: शेषभुजद्वयवर्गसमान: स्यात् तदा शेषभुजद्वयमध्यकोण: समकोण: स्यात्।
यथा अबजत्रिभुजे बजवर्ग: अबअजयो: वर्गयोगसमानस्तदा अ: समकोणो जात:।
कुत:।
अदलम्ब: अजरेखायां अबतुल्य: कार्य:। जदरेखा लग्ना कार्या। तदा दजवर्गजबवर्गौ समौ स्त:। दजजबौ समौ स्त:। तदा अबजत्रिभुज अदजत्रिभुजयो: कोणौ भुजौ च समौ स्याताम्। तदा जअबकोणो जअदकोणेन सम: स्यात्। तदा जअब: समकोणो भविष्यति। इदमेवास्माकमिष्टम्।।
श्रीमद्राजाधिराजप्रभुवरजयसिंहस्य तुष्ट्यै द्विजेन्द्र:
श्रीमत्सम्राड् जगन्नाथ इति समभिधाख्यातनाम्ना प्रणीते।
ग्रन्थेऽस्मिन्नाम्नि रेखागणित इति सुकोनावबोधप्रदातर्यध्यायोऽमध्येतृमोहापह इति विरतिँ चादिम: संगतोऽभूत्।।
इति रेखागणिते प्रथमोऽध्याय: ।।१।।
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